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________________ है। इष्ट और अनिष्ट-दोनों प्रकार के कर्म-विपाकों में पुद्गलों का योग रहता है। पौद्गलिक परिणतियां उन विपाकों को बढ़ा भी सकती हैं और कम भी कर सकती हैं। ___एक आदमी मदिरा पीता है। मदिरा मोह-कर्म के विपाक में निमित्त बनती है। मूर्छा आ जाती है। क्या ऐसा पदार्थ नहीं है, जिसके सेवन से हमारी जागृति बन जाए, मोह-कर्म का विपाक कम हो जाए? ऐसे पदार्थ हैं। ऐसा हो भी एकता है। यदि एक वस्तु के सेवन से काम-वासना को उत्तेजना मिलती है तो क्या ऐसी वस्तु नहीं हो सकती, जिसके सेवन से काम-वासना शांत हो जाए? ऐसे पदार्थ हैं। पदार्थों का अभाव हमारी जानकारी का हो सकता है। जब परीक्षा का समय आता है, तब अनुभवी माता-पिता अपने बच्चों को ऐसी औषधियों का सेवन करवाते हैं, जिनसे बच्चों की बुद्धि, स्मरण-शक्ति तीव्र होती है और वह उनकी परीक्षा में सहयोगी बन जाती है। _ ध्यान-काल में शक्ति का व्यय होता है। मस्तिष्क की शक्ति बहुत खर्च होती है। हमारे मस्तिष्क की विद्युत् को बहुत काम करना पड़ता है। अधिक ऊष्मा पैदा हो जाती है। व्यय अधिक होता है। मैंने एक होम्योपैथिक चिकित्सक से पूछा कि शक्ति-संतुलन को बनाये रखने के लिए क्या अमुक पदार्थ का सेवन उचित होगा? उसने कहा-बहुत ही उचित रहेगा। जो शक्ति खर्च होती है, वह इस पदार्थ से मिल जाएगी। शक्ति का सन्तुलन बना रहेगा। ध्यान में सहयोग मिलेगा। ___ सरदारशहर के सेठ सुमेरमलजी दूगड़ के सुपुत्र भंवरलालजी एक कुशल चिकित्सक थे। वे बहुत ही अनुभवी थे। मुझसे एक दिन कहा-आपको मस्तिष्क की शक्ति का अधिक व्यय करना पड़ता है। लिखना, पढ़ना और चिन्तन-मनन अधिक करना पड़ता है। इन कार्यों में मस्तिष्क की शक्ति का बहुत व्यय होता है। आप अभी से यह ध्यान रखें कि शक्ति का संतुलन बना रहे, जितना व्यय हो, वह पूरा होता रहे। अन्यथा कठिनाइयां पैदा हो सकती हैं। उन्होंने कुछ उपाय भी सुझाए। उन्होंने कहा-आप सूखे आंवलों का सेवन करें, काली मिर्च का सेवन करें। कभी-कभी मुक्ता का सेवन करते रहें, जिससे कि जो मस्तिष्कीय आवेग-चिकित्सा 105
SR No.004275
Book TitleKarmwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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