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________________ NEETI जीव विचार प्रकरण ARIHSHORS भावार्थ जिस वनस्पति के एक शरीर में एक जीव होता है, वह प्रत्येक वनस्पतिकाय कहलाती है और इसके सात भेद हैं - (1) फल (2) फूल (3) छाल (4) काष्ठ (5) मूल (6) पत्ता (7) बीज // 13 // विशेष विवेचन प्रस्तुत गाथा में प्रत्येक वनस्पतिकाय के लक्षण एवं भेद प्रस्तुत किये गये हैं। जिस वनस्पति के एकशरीर में एक जीवात्मा होती है, वह प्रत्येक वनस्पतिकाय कहलाती हैं / इसके सात भेद होते हैं - फल, फूल, छाल, काष्ठ, मूल, पत्ता और बीज। वनस्पतियों की उत्पत्ति एवं नाश के कारण अलग-अलग होते हैं। उनके अवयव एवं उपयोगिता भिन्न-भिन्न होती हैं। कुछ वनस्पतियों में संख्यात जीव होते हैं, कुछ में असंख्यात जीव होते हैं और कुछ में अनन्त जीव होते हैं। संपूर्ण वृक्ष रुपी जीव का शरीर अलग होता है, फल, फूल, छाल, काष्ठ, मूल, बीज, शाखाओं, प्रशाखाओं, छोटी-बडी लताओं का भी शरीर अलग-अलग होता है। एक शरीर में एक जीव होने से वह प्रत्येक वनस्पतिकायिक जीव कहलाता है। एक वृक्ष आश्रित होकर असंख्यात प्रत्येक वनस्पतिकायिक जीव जीवन यापन करते हैं। इस अपेक्षा से कोई वृक्ष संख्यात या असंख्यात जीवों का समूह होता है। वृक्ष का कोई भाग यदि साधारण वनस्पतिकायिक होता है तो वह अनन्त जीवों का भी आधार बन जाता है। प्रत्येक वनस्पतिकाय बारह प्रकार की होती हैं - (1) वृक्ष - आम, पीपल, नाशपाती, नीम, बबूल आदि / (2) गुच्छ - कपास, मिर्च आदि के पौधे / (3) गुल्म - मोगरा, कोरंड आदि के पुष्प / (4) लता - अशोक, चंपक आदि की निराश्रित लताएँ। (5) वल्लि - करेले, खरबूजे, काशीफल आदि की लताएँ।
SR No.004274
Book TitleJeev Vichar Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManitprabhsagar
PublisherManitprabhsagar
Publication Year2006
Total Pages310
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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