SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 301
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ MRIBE जीव विचार प्रश्नोत्तरी शरीर से आत्म प्रदेशों को बाहर निकालते हुए कर्म निर्जरा करना आहारक समुद्घात कहलाता है। 824) तैजस समुद्घात किसे कहते है ? उ. तेजो लेश्या सम्पन्न जीव तैजस शरीर के कर्म पुद्गल बाहर निकालता हुआ को बाहर निकालकर कर्म निर्जरा करता है, उसे तैजस समुद्घात कहते है। 825) केवली समुद्घात किसे कहते है ? उ. केवली भगवंत के चार अघाती कर्मों में से आयुष्य कर्म की स्थिति कम और शेष तीन कर्मों की स्थिति अधिक हो तब केवली भगवंत निर्वाण में अन्तर्मुहूर्त शेष रहने पर आत्म प्रदेशों को लोकाकाश में फैलाकर कर्म निर्जरा करते हैं, उसे केवली समुद्घात कहते है। 826) संघयण किसे कहते है ? उ. शरीर के अस्थि-बंधन की मजबूती को संघयण कहते है। 827) संघयण कितने प्रकार के होते हैं ? उ. छह प्रकार के - (1) वज्रऋषभनाराच (2) ऋषभनाराच (3) नाराच (4) अर्द्धनाराच ___(5) कीलिका (6) छेवट्ठ (सेवार्त) 828) वजऋषभनाराच संघयण किसे कहते है ? . उ. मर्कटबंध से बंधी हुई दो हड्डियों के उपर तीसरी हड्डी आवेष्टित हो और तीनों को भेद कर मजबूत बनाने वाली कील हो, उसे वजूऋषभनाराच संघयण कहते है / 829) ऋषभनाराच संघयण किसे कहते है ? उ. दोनों तरफ मर्कटबंध से बंधी हुई दो हड्डियों के उपर तीसरी हड्डी का वेष्टन हो परन्तु ___ तीनों को भेदने वाली कील न हो, उसे ऋषभनाराच संघयण कहते है / 830) नाराच संघयण किसे कहते है ? उ. हड्डियों दोनों ओर से मर्कटबंध से बंधी (कसी) हुई हो पर उसके उपर तीसरी हड्डी का ___ वेष्टन न हो और कील भी न हो, उसे नाराच संघयण कहते है / 831) अर्द्धनाराच संघयण किसे कहते है ?
SR No.004274
Book TitleJeev Vichar Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManitprabhsagar
PublisherManitprabhsagar
Publication Year2006
Total Pages310
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy