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________________ HTTERTISE जीव विचार प्रकरण BIRTHERNET अवगाहना धनुष्य पृथक्त्व और भुजपरिसर्प की अवगाहना की गव्यूत पृथक्त्व होती है॥३०॥ विशेष विवेचन प्रस्तुत गाथा में पंचेन्द्रिय तिर्यंच प्राणियों की अवगाहना का स्पष्टीकरण है / . धनुष्य पृथक्त्व - दो से नौ की संख्याओं को पृथक्त्व कहते है जैसे 2-3, 2-4, 2 - 5,2-6,2-7.2-8,2-9,3-4,3-5,3-6,3-7,3-8,3-9,4-5,4-6,4-7,4-8,49,5-6,5-7,5-8,5-9,6-7,6-8,6-9,7-8,7-9,8-9, ये समस्त पृथक्त्व के भेद गव्यूत पृथक्त्व एवं योजन पृथक्त्व को भी धनुष्य पृथक्त्व की भाँति समझना चाहिये। गर्भज और संमूर्छिम, दोनों ही प्रकार के जलचर जीवों की उत्कृष्ट अवगाहना हजार योजन की होती है / गर्भज उरपरिसर्पजीवों की उत्कृष्ट अवगाहना हजार योजन की होती हैं / गर्भज खेचर एवं गर्भज भुजपरिसर्प की उत्कृष्ट अवगाहना क्रमशः धनुष्य पृथक्त्व एवं गव्यूत पृथक्त्व की होती है। यहाँ पृथक्त्व के विभिन्न प्रकारों में से कोई भी प्रकार हो सकता है। यहाँ जो उत्कृष्ट अवगाहना बताई गयी है, वह ढाई द्वीप से बाहर के जीवों की समझनी चाहिये / उत्कृष्ट अवगाहना वाले मत्स्य स्वयंभूरमण समुद्र में होते हैं। . संमूर्छिम तिर्यंच पंचेन्द्रिय जीवों की अवगाहना गाथा खयरा धणुह-पहुत्तं, भुयगा उरगा य जोयण-पहुत्तं / गाउअ-पहुत्त-मित्ता समुच्छिमा चउप्पया भणिया // 31 // अन्वय समुच्छिमाखयराय भुयगा धणुह-पहत्तं उरगा जोयण पहुत्तं चउप्पया गाउअपहुत्त-मित्ता भणिया // 31 // 31
SR No.004274
Book TitleJeev Vichar Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManitprabhsagar
PublisherManitprabhsagar
Publication Year2006
Total Pages310
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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