SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 84
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ परिशिष्ट 2 : कथाएं विवाह कर देना, वह उत्तम पुरुष है। उसके साथ वह दारिका विपुल सौख्यभागिनी होगी। नैमित्तिक ने मुझे जैसा बताया था, वैसा तरुण आज मेरे घर पर आया। नैमित्तिक के कथन को प्रमाण मानकर मैंने अपनी दारिका उसे दे दी। उसके निमित्त यह उत्सव मनाया जा रहा है। मुझे ज्ञात नहीं था कि आपका कुमार भाग गया है। आप मेरा अपराध क्षमा करें।' राजा ने अपने आदमियों को भेजा। जिन लोगों ने कुमार को पहले उद्यान में देखा था, उन्होंने कुमार को पहचान लिया। उन्होंने आकर राजा को यह बात बताई। तब राजा स्वयं गणिका के घर गया। उसने चांद की भांति सोमलेश्या से युक्त कुमार को देखा। राजा का मन परम प्रीति से आप्लावित हो गया। वह वधूसहित कुमार को अपने प्रासाद में ले गया। सदृश कुल, रूप, यौवन आदि गुणों से युक्त कन्याओं के साथ उसका पाणिग्रहण हुआ। राज्य का संविभाग प्राप्त कर कुमार वल्कलचीरी सुखपूर्वक रहने लगा। उस रथिक को चोर द्वारा प्रदत्त धन ले जाते हुए देखकर राजपुरुषों ने उसे चोर समझकर पकड़ लिया। राजकुमार वल्कलचीरी ने प्रसन्नचन्द्र को ज्ञात कराकर उसे मुक्त करवा दिया। - इधर राजर्षि सोमचन्द्र कुमार को आश्रम में न देखकर शोकसागर - में डूब गए। महाराज प्रसन्नचन्द्र द्वारा भेजे गए पुरुषों ने आकर कहा–'हमने पोतनपुर में राजा के पास कुमार को देखा है।' यह सुनकर राजर्षि आश्वस्त हुए। फिर भी प्रतिदिन कुमार की स्मृति करने के कारण वे अंधे हो गए। वे ... .ऋषियों के साथ वहीं आश्रम में रहने लगे। कुमार वल्कलचीरी को राजप्रासाद में रहते बारह वर्ष बीत गए। एक बार आधी रात बीत जाने पर वह जाग गया और अपने पिता के विषय में चिंतन करने लगा। उसने सोचा-'मैं निघृण हूं, न जाने मेरे से विरहित मेरे पिता कहां हैं?' उसके मन में पिता के दर्शन की तीव्र उत्सुकता जाग गई। प्रभात होते ही वह महाराज प्रसन्नचन्द्र के पास जाकर बोला-'देव! पिता को देखने की मेरी उत्कंठा जाग गई है। आप मुझे विसर्जित करें।' प्रसन्नचन्द्र
SR No.004272
Book TitleAgam Athuttari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2012
Total Pages98
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy