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________________ अथ योगद्वारमभिधित्सुराह भव्वस्स मोक्खमग्गाहिलासिणो ठियगुरूवएसस्स। आईए जोग्गमिणं बाल-गिलाणस्स वाऽऽहारं // 4 // [संस्कृतच्छाया:- भव्यस्य मोक्षमोर्गाभिलाषिणः स्थितगुरूपदेशस्य। आदौ योग्यमिदं बालग्लानयोरिवाऽऽहारम्॥] व्याख्या- यदादौ प्रतिज्ञातम्-शिष्यप्रदानेऽस्य योगोऽवसरो वाच्य इति / तत्राह-समस्तद्वादशाडग्यध्ययनकालस्यादौ / प्रथममिदं षड्विधमावश्यकं योग्यमुपदिशन्ति मुनयः, शेषसमग्रश्रुतप्रदानकालस्यादौ प्रथममेवाऽऽवश्यकप्रदानस्याऽवसर . इति भावः। अर्थात् कारण से ही कार्य की सिद्धि हो सकती है, न कि उससे, जो (उस फल का) कारण नहीं है / इस दृष्टि से, समझदार लोग कारण की सम्यक् विवेचना करने के बाद ही अपने इच्छित कार्य की निर्विघ्न सिद्धि कर पाते हैं, न कि अकारण की सम्यक् विवेचना करके। अन्यथा (अकारण) तृण से भी, हिरण्य-मणि-मौक्तिक आदि की प्राप्ति होने लगे तो समस्त विश्व दरिद्रता-रहित हो जाए। (तात्पर्य यह है कि) यहां मोक्ष का परम्परया कारण आवश्यक-अनुयोग ही है, न कि षष्टितन्त्र आदि (शास्त्र), क्योंकि वही ज्ञान-क्रिया की उत्पत्ति के माध्यम से मोक्ष का यथार्थ साधक है, उससे भिन्न (षष्टितन्त्र आदि) तो परम्परया भी मोक्ष का साधक नहीं हैं। यह गाथा का अर्थ हुआ। इस प्रकार फल-द्वार का कथन पूर्ण हुआ // 3 // अब योग द्वार के निरूपण की इच्छा से (भाष्यकार प्रस्तुत गाथा) कह रहे हैं भव्वस्स मोक्खमग्गाहिलासिणो ठियगुरूवएसस्स / आईए जोग्गमिणं बालगिलाणस्स वाऽऽहारं // [(गाथा अर्थः) मोक्षमार्ग के अभिलाषी तथा गुरु-उपदेश के अनुरूप कर्तव्य-आचरण में स्थित भव्य (शिष्य) को सर्वप्रथम इस (आवश्यक) का उसी प्रकार उपदेश देना चाहिए जिस प्रकार (वैद्य द्वारा) बाल व ग्लान (रोगी) को (सर्वप्रथम) आहार का निर्देश दिया जाता है।] ___व्याख्याः - चूंकि (भाष्यकार ने) सर्वप्रथम यह दृढ़ कथन किया था कि यह बताना अपेक्षित है कि शिष्यों को इस (आवश्यक-अनुयोग सम्बन्धी ज्ञान) को देने में क्या औचित्य (योग) व (कब उचित) अवसर है। अतः (अपने उसी कथन के अनुरूप भाष्यकार ने) कहा- समस्त द्वादशाङ्ग के अध्ययन के समय में सर्वप्रथम इस छः प्रकार के सामायिक का उपदेश देना योग्य (उचित) है- ऐसा मुनियों का उपदेश है। तात्पर्य यह है कि शेष समस्त श्रुत के ज्ञान-दान के पूर्व में सर्वप्रथम आवश्यक सम्बन्धी (ज्ञान के ) दान का (उचित) अवसर होता है। Mar 14 -------- विशेषावश्यक भाष्य ----------
SR No.004270
Book TitleVisheshavashyak Bhashya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Damodar Shastri
PublisherMuni Mayaram Samodhi Prakashan
Publication Year2009
Total Pages520
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size11 MB
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