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________________ सन्देहसन्दोहशैलशृंग आदि आदरपूर्ण विशेषणों का प्रयोग किया है। इससे स्पष्ट है कि ये दार्शनिक जगत् के एक विशिष्ट आचार्य के रूप में प्रख्यात हुए। ____ आ. जिनभद्र गणि क्षमाश्रमण जैन आगम-परम्परा के प्रबल पोषक आचार्य रहे हैं। ये भारतीय दर्शन व न्याय के तो विशिष्ट विद्वान् थे ही, इनका संस्कृत प्राकृत - इन दोनों भाषाओं पर भी पूर्ण अधिकार था। इनकी कृतियां प्राकृत व संस्कृत, दोनों में प्राप्त होती हैं। इनकी अर्थप्रतिपादनक्षमता, तार्किक शक्ति, अभिव्यक्तिकुशलता एवं विशिष्ट प्रतिपादन-शैली अप्रतिम है - इसमें संदेह नहीं। इन्हें महानिशीथ सूत्र के उद्धारकर्ता के रूप में भी ख्याति प्राप्त है। आ. जिनभद्र रचित 'विविध तीर्थकल्प' में ऐसा वर्णन मिलता है कि महानिशीथ सूत्र दीमकों द्वारा नष्ट कर दिया गया था, किन्तु इन्होंने मथुरा में देवनिर्मित स्तूप में अधिष्ठित देव की आराधना की और उसके फलस्वरूप उस सूत्र का पुनरुद्धार किया। आचार्य सिद्धसेन गणी ने जिनभद्रगणी क्षमाश्रमण के अनेकानेक वैदुष्यपूर्ण कार्यों का निर्देश करते हुए उन्हें युगप्रधान, अनुयोगधर, दर्शनज्ञानोपयोग के मार्गदर्शक, क्षमाश्रमणों में निधानभूत आदि अनेक सम्मानसूचक विशेषणों के साथ श्रद्धाप्रणति निवेदित की है। क्षमाश्रमण की भाष्येतर रचनाएं : विशेषावश्यकभाष्य के अतिरिक्त इनकी अन्य कृतियां भी हैं। वे हैं- जीतकल्पभाष्य, बृहत्संग्रहणी, बृहत् क्षेत्रसमास, विशेषणवती, अनुयोगद्वार चूर्णि (अनुपलब्ध)। इनमें विशेषावश्यक भाष्य पर स्वोपज्ञ वृत्ति संस्कृत गद्य में हैं, शेष ग्रन्थ प्राकृत पद्यात्मक हैं / अनुयोगद्वार चूर्णि को जिनदास कृत अनुयोगचूर्णि एवं हरिभद्रीय अनुयोगद्वारवृत्ति में अक्षरशः उद्धृत किया गया है। 'ध्यानशतक' नाम का प्राकृतपद्यात्मक ग्रन्थ भी इनके द्वारा रचित माना जाता है, किन्तु इस विषय में सभी विद्वान् एकमत नहीं है। भाष्य का रचना-काल जिनदास महत्तर कृत नन्दीचूर्णि में जिनभद्रगणी क्षमाश्रमण-कृत विशेषावश्यक भाष्य का उल्लेख मिलता है और नन्दीचूर्णि का रचना-काल वि. सं. 733 है, अतः भाष्यकार का समय इससे पूर्व मानना पड़ेगा। इसी तरह, विशेषावश्यक भाष्य आदि ग्रंथों में सिद्धसेन, पूज्यपाद आदि उन आचार्यों एवं उनके मतों का उल्लेख है जो विक्रम संवत् 5-6 शती में हुए हैं। अत: यह मानना पड़ेगा कि भाष्यकार विक्रम संवत् 5-7वीं शती के मध्य किसी समय हुए होंगे। इन्हीं अनेक प्रमाणों पर ऊहापोह करके विद्वानों ने जिनभद्रगणी क्षमाश्रमण का समय विक्रम संवत् 6-7 वीं शती (545-650 वि. सं.) निर्धारित किया है। जैसलमेर भंडार में विशेषावश्यक भाष्य की एक प्रति प्राप्त हुई है, जिसके अंत में यह सूचित किया गया है कि वलभी नगरी में शक सं. 531 (वि. सं. 666) में इसकी रचना पूर्ण हुई : 68. द्र. जीतकल्पचूर्णि, गाथा-510. ROORB0ROOR00R [54] RO0BROORB0BROOR
SR No.004270
Book TitleVisheshavashyak Bhashya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Damodar Shastri
PublisherMuni Mayaram Samodhi Prakashan
Publication Year2009
Total Pages520
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size11 MB
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