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________________ उदाहरणों से होती है। जैसे- आवश्यक नियुक्ति के प्रथम अध्ययन की 157 गाथाएं हरिभद्रीय वृत्ति में हैं, किन्तु आवश्यक चूर्णि में मात्र 57 गाथाएं ही हैं। निश्चय ही चूर्णि व हरिभद्रीय वृत्ति के मध्य 100 गाथाएं और जुड़ गई हैं। इतना ही नहीं, भद्रबाहु (द्वितीय) के बाद भी गाथाओं में वृद्धि होते रहने की सम्भावना से इन्कार नहीं किया जा सकता। मुनिश्री पुण्यविजय जी ने भी उक्त विचार का समर्थन करते हुए कहा है कि आगमों की निरुक्तिपद्धति से व्याख्या और नियुक्ति-रचना की परम्परा अति प्राचीन रही है। जैसे- वैदिक परम्परा में 'निरुक्त' (यास्क आदि रचित) अति प्राचीन है, वैसे ही जैन परम्परा में भी नियुक्ति-व्याख्यान परम्परा अति प्राचीन है। अनुयोगद्वार में 'नियुक्ति-अनुगम' का निर्देश है और वहां नियुक्ति रूप कुछ गाथाएं भी प्राप्त हैं। भद्रबाहु (द्वितीय) के पूर्व भी नियुक्ति साहित्य के अस्तित्व को नकारा नहीं जा सकता। अत: नियुक्ति की रचना में श्रुतकेवली भद्रबाहु (प्रथम) और भद्रबाहु (द्वितीय)-दोनों का ही योगदान है - ऐसा माना जाना चाहिए। नियुक्तिकार भद्रबाहु (द्वितीय) का समय ___ अधिकांश जैन विद्वान् भद्रबाहु (द्वितीय) को नियुक्तिकार मानते हैं। अतः इन्हीं के समय के सम्बन्ध में यहां विचार किया जा रहा है। आ. भद्रबाहु (द्वितीय) ज्योतिर्विद् वराहमिहिर के भाई थे। वराहमिहिर का समय वि. लगभग छठी शती माना जाता है, क्योंकि उन्हीं के द्वारा रचित ग्रन्थ पंचसिद्धान्तिका' में इसका रचनाकाल शक सं. 427 अर्थात् वि. सं. 562 निर्दिष्ट किया गया है: सप्ताश्विवेदसंख्यं शककालमपास्य चैत्रशुक्लादौ। अर्धास्तमिते भानौ यवनपुरे सौम्यदिवसाद्ये // अतः भद्रबाहु (द्वितीय) का समय वि. सं. 500-600 के मध्य (छठी से सातवीं शती के प्रारम्भ तक) माना जाना चाहिए। इन्हीं भद्रबाहु की रचना उपसर्गहर स्तोत्र व भद्रबाहुसंहिता (अनुपलब्ध)- ये दो ग्रन्थ भी हैं। नियुक्तियों के भी इन्हीं के द्वारा रचित होने की संभावना इसलिए भी बलवती होती है क्योंकि उनकी मंत्रविद्याकुशलता का दर्शन कुछ स्थलों पर होता है। उदाहरणार्थ, आवश्यक नियुक्ति में वर्णित गन्धर्व नागदत्त के कथानक में नाग-विष उतारने की क्रिया का निर्देश है जिसमें उपसर्गहर स्तोत्र के 'विसहरफुल्लिंगमंतं' इत्यादि पद्य की प्रतिच्छाया देखी जा सकती है। इसके अतिरिक्त, उन्होंने सूर्यप्रज्ञप्ति पर भी नियुक्ति की रचना की थी, जिसमें भी इनका ज्योतिर्विद्-स्वरूप समर्थित होता है। आ. भद्रबाहु (द्वितीय) का जीवन-वृत्त 'प्रबन्धकोश' में वर्णित कथानक के अनुसार महाराष्ट्र के प्रतिष्ठानपुर में एक ब्राह्मण परिवार में इनका जन्म हुआ। इनके कनिष्ठ भ्राता का नाम वराहमिहिर था, जो इतिहास में एक महान् ज्योतिर्विद्-विद्वान् के रूप में प्रसिद्ध हुए। इनका गृहस्थ जीवन निर्धन वह निराश्रित अवस्था में बीता। दोनों भाइयों के मन में विरक्ति की 62. द्र. जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग-3, पृ. 68-69. ROBROORB0BRB0R [49] Ren@RB0BRB0ROOR
SR No.004270
Book TitleVisheshavashyak Bhashya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Damodar Shastri
PublisherMuni Mayaram Samodhi Prakashan
Publication Year2009
Total Pages520
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size11 MB
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