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________________ गाथा सं. पृष्ठ सं. 173 146 221 220 398 271 141 417 .. 403 गाथा सं. पृष्ठ सं. इह लद्धिमइसुयाई |किह मइसुयनाणविक इह सव्वभेअसंघाय. | किं तं पुव्वं गहियं ईहा संसयमेत्तं केई |किं पुण तमणेगंतिय. ईहिज्जइ नागहियं | किंवा नाणेऽहिगए उक्कमओऽइक्कमओ | किं सद्दो किमसद्दो उग्गहो ईह अवाओ (नि.) | केइ अभासिजंता उजुसुअस्स सयं केइन्दिहालोयणपुव्व उप्पलदलसयवेहे केई तयण्णविसेसा उभयं भावक्खरओ केई बुद्धिद्दिडे. उवलद्धा तत्थाऽऽया केई बेन्तस्स सुयं एक्कं निच्चं निरवयव केवलमेगं सुद्ध एगंतेण परोक्खं केसिंचि इंदिआई एगो मंगलमगं खिप्पेयराइभेओ जमोग्गहो एगो वाऽवाओ च्चिय | खिप्पेयराइभेओ पुव्वोइय एत्तो च्चिय ते सव्वे गहियं व होउ तहियं एवं चिय सुमिणाइसु | गंतुं न रूवदोसं एवं धणिपरिणाम | गंतुं नेएण मणो एवं विवयंति तया गिज्झस्स वंजणाणं एवं सव्वपसंगो गिण्हंति पत्तमत्थं कज्जतया न उ कमसो चउवइरित्ताभावा कत्तो एत्तियमेत्ता चूओ वणस्सइच्चिय कप्पेजेज व सो भाव. चूयाईएहितो कम्मोदयओव्व सहाव | जइ तं सुएण न तओ कयपंचनमोक्कारस्स जइ दव्वमणोऽतिबली कयपवयणप्पणामो जइ नयणिन्दियमप्पत्त करणत्तणओ तणुसंठिएण जइ नाणमागमो कह मइसुओवलद्धा जइ पत्तं गेण्हेज उ कहमव्वत्तं नाणं | जइ मइरणक्खरच्चिय काणुवओगाम्मि धिई जइ मंगलं सयं चिय कालविवजयसामित्त. जइ वऽण्णाणमसंखेजा कासइ तयन्नवइरेग 272 | जइ सद्दबुद्धिमत्तय Ma 442 -------- विशेषावश्यक भाष्य 322 358 57 292 374
SR No.004270
Book TitleVisheshavashyak Bhashya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Damodar Shastri
PublisherMuni Mayaram Samodhi Prakashan
Publication Year2009
Total Pages520
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size11 MB
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