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________________ खिप्पेयराइभेओ, जमोग्गहो तो विसेसविण्णाणं। जुज्जइ विगप्पवसओ सद्दो त्ति सुयम्मि जं केई॥२८०॥ [संस्कृतच्छाया:-क्षिप्रेतरादिभेदः यदवग्रहः, ततो विशेषविज्ञानम्। युज्यते विकल्पवशत: शब्द इति सूत्रे यत् केचित् // ] 'केइ त्ति'। इहाऽर्थावग्रहे विशेषज्ञानसमर्थनाऽऽग्रहममुमुक्षवोऽद्यापि केचिद् मन्यन्ते। किम्?, इत्याह- क्षिप्रेतरादिभेदो यस्मादवग्रहो ग्रन्थान्तरे भणितः अत्रापि च विस्तरेण भविष्यते' इति गम्यते। ततः शब्दः' इति विशेषविज्ञानं युज्यते घटते 'अर्थावग्रहे' इति प्रस्तावादेव लभ्यते / यत् किम्? इत्याह- 'सुयम्मि जं ति'। 'तेण सद्दे त्ति उग्गहिए' इत्यादि- वचनात् यत् सूत्रे निर्दिष्टम् इति शेषः। कुतः पुनरिदं विशेषविज्ञानं युज्यते?, इत्याह-विकल्पवशतोऽन्यत्रोक्तनानात्ववशतः, इत्यक्षरघटना॥ एतच्चाऽत्र हृदयम्-'क्षिप्रमवगृह्णाति, चिरेणाऽवगृह्णाति, बह्ववगृह्णाति, अबह्ववगृह्णाति, बहुविधमवगृह्णाति, अबहुविधमवगृह्णाति, एवमनिश्रितम्, निश्रितं, असंदिग्धं, संदिग्धम्, ध्रुवम्, अध्रुवमवगृह्णाति' इत्यादिना ग्रन्थेनाऽवग्रहादयः शास्त्रान्तरे // 280 // खिप्पेयराइभेओ, जमोग्गहो तो विसेसविण्णाणं। जुज्जइ विगप्पवसओ सद्दो त्ति सुयम्मि जं केई॥ [(गाथा-अर्थ :) कुछ (वादी) कहते हैं कि चूंकि अवग्रह क्षिप्र, चिर आदि (अनेक) भेदों वाला (कहा गया) है, इसलिए (इन नाना) विकल्पों की अधीनता-वश 'शब्द अवगृहीत होता है' -इस प्रकार सूत्र में जो (निर्दिष्ट) है, वह विशेष विज्ञान (के रूप में भी) संगत होता है।] __ व्याख्याः - (केचित् इति)। इस अर्थावग्रह में कुछ वादी अवग्रह में विशेष ज्ञान के सद्भाव के समर्थन सम्बन्धी अपने आग्रह को छोड़ना नहीं चाहते, वे अब भी मानते हैं। (प्रश्न-) क्या (मानते हैं)? उत्तर कहा- (क्षिप्रेतरादिभेदः यत् अवग्रहः)। चूंकि ग्रन्थान्तर में अवग्रह को क्षिप्र, चिर आदि अनेक भेदों वाला बताया गया है, 'इस ग्रन्थ में भी विस्तार से कहा जाएगा' यह भी इसी कथन से ज्ञात होता है। इसलिए 'शब्द' -ऐसा जो विशेष विज्ञान है, वह संगत या घटित होता है, 'अर्थावग्रह में' -यह (उक्त कथन का शेष भाग है, ऐसा) प्रकरणानुसार प्राप्त होता है। (प्रश्न-) जो विशेष विज्ञान है, वह क्या है? उत्तर है- (सूत्रे यत् इति)। "उसने 'शब्द' इस तरह गृहीत किया" -इत्यादि (आगमिक) वचनों से, सूत्र (आगम) में जो निर्दिष्ट हुआ है- यह उक्त कथन का शेष भाग है। (प्रश्न) यह विशेष विज्ञान किस प्रकार घटित होता है? उत्तर दिया- (विकल्पवशतः)। विकल्पों के कारण, अर्थात् अवग्रह के जो नाना भेद बताए गये हैं, उनके कारण / इस प्रकार भाष्योक्त गाथा की अक्षरशः संयोजना को समझें। यहां (भाष्य-गाथा का) तात्पर्य इस प्रकार है- "शीघ्र अवग्रहण करता है, देर से अवग्रहण करता है, बहुत अवग्रहण करता है, थोड़ा अवग्रहण करता है, बहुत प्रकार का अवग्रहण करता है, अल्प प्रकार का अवग्रहण करता है, इसी प्रकार अनिश्रित, निश्रित, असंदिग्ध, संदिग्ध, ध्रुव व अध्रुव Via 406 -------- विशेषावश्यक भाष्य ----------
SR No.004270
Book TitleVisheshavashyak Bhashya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Damodar Shastri
PublisherMuni Mayaram Samodhi Prakashan
Publication Year2009
Total Pages520
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size11 MB
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