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________________ तो आचार्य नियुक्ति-पद्धति से सूत्र का व्याख्यान करते हैं। श्रोता मंदबुद्धि न भी हों तो भी आचार्य स्वयमेव सामान्यतः शिष्यों का ध्यान रख कर इसी नियुक्ति-पद्धति से व्याख्यान करते हैं। किन्तु नियुक्ति में इतना विस्तार भी नहीं होता कि वह मूलसूत्र से पृथक् एक स्वतन्त्र बृहदाकार वाली कृति बन जाय। उसमें उतना ही होता है जितना सूत्रार्थ की सम्यगर्थ-स्पष्टता के लिए आवश्यक हो। नियुक्तिः पद्धति में विशेष व्याख्यान भी नियुक्ति-पद्धति को विशेष रूप से समझाने के लिए भाष्यकार ने अनुगम के तीन भेदों का निर्देश किया है। वे भेद हैं- (1) निक्षेपनियुक्ति अनुगम, (2) उपोद्घात-नियुक्ति अनुगम, और (3) सूत्रस्पर्शिक नियुक्ति अनुगम" वस्तुत: उपोद्घात-नियुक्ति में ही निक्षेप-नियुक्ति समाविष्ट है। निक्षेप को अनुयोग द्वार के भेद रूप में तथा उपोद्घात नियुक्ति के भेद रूप में- दोनों रूपों में निर्दिष्ट किया गया है। इन दोनों का अन्तर यह है कि निक्षेप रूप अनुयोग द्वार में नामादि निक्षेपों के अनुरूप 'अर्थ' का निर्देश मात्र होता है, जब कि उपोद्घात-नियुक्ति के अन्तर्गत उनका शब्दार्थविचार भी किया जाता है। उपोद्घात-नियुक्ति के अन्तर्गत प्रतिपाद्य विषय-वस्तु की पृष्ठभूमि प्रस्तुत की जाती है और 26 बिन्दुओं से विषय को स्पष्ट किया जाता है। ये बिन्दु उपोद्घात-द्वार कहलाते हैं। जैसे, आवश्यक नियुक्ति व विशेषावश्यक भाष्य में सामायिक आवश्यक से सम्बन्धित पृष्ठभूमि या उपोद्घात रूप में निम्नलिखित 26 बिन्दुओं से मीमांसा की गई है: (1) (उद्देश-) सामायिक का सामान्य नाम क्या है ? (2) (निर्देश-) उसके विशेष (भेदों के )नाम क्या हैं? (3) (निर्गम) उसकी उत्पत्ति का मूलस्रोत कौन है ? (4) (क्षेत्र-) किस क्षेत्र में उत्पत्ति है? (5) (काल-) उसकी प्रतिपत्ति किन-किन कालखण्डों में होती है? (6)(पुरुष-) उसका कर्ता कौन है ? (निश्चय व व्यवहार नय से)? (7) (कारण-) सामायिक-प्ररूप्णा में कारण क्या? (8)(प्रत्यय-) कथन व श्रवण करने वालों को प्रतीति कैसी? (9)(लक्षण:-) सामायिक के भेदों के लक्षण क्या हैं ? (10) (नय-) विविध नयों से सामायिक का स्वरूप क्या है? (11) (समवतार-) किस सामायिक का समवतार किस करण में होता है? (12)(अनुमत-) कौन-सी सामायिक मोक्ष में कारण मानी गई है ? (13)(क्या-) सामायिक है क्या? (14) 38. वि. भाष्य, गाथा- 1091, 39. वि. भाष्य, गाथा- 1090 40. निर्युक्तयो न स्वतन्त्रशास्त्ररूपाः, किन्तु तत्तत्सूत्र-परतन्त्राः तथा व्युत्पत्त्याश्रयणात् (पिण्डनियुक्ति-टीका, पत्र-1)। 41. विशेषावश्यक भाष्य, गाथा- 972 966 एवं बृहवृत्ति 42. इह निक्षेपद्वारे सामायिकस्य नामादिनिक्षेपमात्रमेव उच्यते, तदर्थ निरूपणमात्रमेव च निक्षेपनियुक्तौ निर्दिश्यते। नैरुक्तस्तु शब्दगतो विचारः, उपोद्घातनिर्युक्त्यन्तर्गते निरुक्तिद्वारे...शब्दार्थविचारः करिष्यते -इत्यर्थः (बृहवृत्ति, वि. भाष्य, गाथा-967)। (RODROICROBRROR [43] R@@ROOR @ @ R@ @R
SR No.004270
Book TitleVisheshavashyak Bhashya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Damodar Shastri
PublisherMuni Mayaram Samodhi Prakashan
Publication Year2009
Total Pages520
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size11 MB
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