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________________ जेणत्थोग्गहकाले, गहणेहाऽवायसंभवो नत्थि। तो नत्थि सद्दबुद्धी, अहत्थि नावग्गहो नाम // 266 // [संस्कृतच्छाया:- येन अर्थावग्रहकाले ग्रहण-ईहा-अपायसंभवो नास्ति। ततो नास्ति शब्दबुद्धिः, अथास्ति नावग्रहो नाम // ] पूर्वं तावदर्थस्य ग्रहणमात्रं, ततश्चेहा, तदनन्तरं त्वपायः, इत्येवं मतिज्ञानस्योत्पत्तिक्रमः। न चैतत्त्रितयं प्रथममेव शब्दार्थेऽवगृहीते समस्तीति। एतदेवाह- येनार्थावग्रहकालेऽर्थग्रहणेहापायानां संभवो नास्ति, ततोऽर्थावग्रहे नास्ति 'शब्दः' इतिविशेषबुद्धिः, अर्थग्रहणेहापूर्वकत्वात् तस्याः। अथाऽस्त्यसौ तत्र, तर्हि नायमर्थावग्रहः, किन्त्वपाय एव स्यात्, नैतद् युज्यते , तदभ्युपगमेऽर्थावग्रहेहयोरभावप्रसङ्गात् / / इति गाथार्थः // 266 // अपि च, अर्थावग्रहे 'शब्दः' इति विशेषबुद्धाविष्यमाणायां दोषान्तरमप्यस्ति। किं तत्?, इत्याह सामण्ण-तयण्णविसेसेहा-वजण-परिग्गहणओ से। अत्थोग्गहेगसमओवओगबाहुल्लमावण्णं // 27 // // 266 // जेणत्थोग्गहकाले, गहणेहाऽवायसंभवो नत्थि / तो नत्थि सद्दबुद्धी, अहत्थि नावग्गहो नाम // [(गाथा-अर्थ :) चूंकि अर्थावग्रह काल में अर्थग्रहण, ईहा व अपाय का होना संभव नहीं होता, इसलिए वहां शब्द बुद्धि नहीं होती, और यदि वह हो तो उसका अवग्रह नाम ही (संगत) नहीं होगा।] व्याख्याः - पहले तो अर्थ का ग्रहण मात्र, उसके बाद ईहा, उसके बाद अपाय -इस प्रकार मतिज्ञान की उत्पत्ति का क्रम है। शब्द रूप अर्थ के ग्रहण (अवग्रह) में प्रथमतः ही इन तीनों की निष्पत्ति नहीं होती। इसी बात को कह रहे हैं- (येन अर्थावग्रहकाले)। चूंकि अर्थावग्रह के समय अर्थग्रहण, ईहा व अपाय संभव नहीं होते, इसलिए अर्थावग्रह में 'यह शब्द है' ऐसी विशेष बुद्धि नहीं होती, क्योंकि वह (विशेष बुद्धि) वहां हो, तो वह अर्थावग्रह नहीं होगा, अपितु 'अपाय' ही होगा, किन्तु ऐसा युक्तिसंगत नहीं है, क्योंकि ऐसा मानने पर, अर्थावग्रह व ईहा का अभाव हो जाएगा // यह गाथा का अर्थ पूर्ण हुआ // 266 // (अर्थावग्रह में विशेषबुद्धि मानने पर दोष) और दूसरी बात, अर्थावग्रह में 'शब्द' ऐसी विशेष बुद्धि होती है- ऐसा मानने में एक अन्य दोष भी है। वह दोष क्या है? इसे ही (भाष्यकार) बताने जा रहे हैं // 267 // सामण्ण-तयण्णविसेसेहा-वज्जण-परिग्गहणओ से। अत्थोग्गहेगसमओवओगबाहुल्लमावण्णं // Na 388 -------- विशेषावश्यक भाष्य ---
SR No.004270
Book TitleVisheshavashyak Bhashya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Damodar Shastri
PublisherMuni Mayaram Samodhi Prakashan
Publication Year2009
Total Pages520
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size11 MB
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