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________________ किञ्च, 'शब्द एवायम्' इति ज्ञानं स्तोकत्वाद् यदर्थावग्रहत्वेन भवताऽभिमतम्, तत् पूर्वमीहामन्तरण न संभवति, तत्पूर्वकत्वे च तस्याऽर्थावग्रहत्वासंभव इति दर्शयन्नाह किं सद्दो किमसद्दो तऽणीहिए सद्द एव किह जुत्तं?। अह पुव्वमीहिऊणं, सद्दो त्ति मयं, तई पुव्वं // 257 // [संस्कृतच्छाया:- किं शब्दः, किमशब्दः इत्यनीहिते शब्द एव कथं युक्तम्। अथ पूर्वमीहित्वा शब्द इति मतं, सा पूर्वम्॥] "किं शब्दोऽयम्' आहोस्वित् 'अशब्दो रूपादिः' इत्येवं पूर्वमनीहिते यत् 'शब्द एव' इति निश्चयज्ञानम्, तदकस्मादेव जायमानं कथं युक्तम्?, विमर्शपूर्वकत्वमन्तरेण नेदं घटत इत्यर्थः। इदमुक्तं भवति- शब्दगतान्वयधर्मेषु, रूपादिभ्यो व्यावृत्तौ च गृहीतायां 'शब्द एव' इति निश्चयज्ञानं युज्यते, तद्ग्रहणं च विमर्शमन्तरेण नोपपद्यते, विमर्शश्चेहा, तस्मादीहामन्तेरणाऽयुक्तमेव 'शब्द एव' इति निश्चयज्ञानम्। - अथ निश्चयकालात् पूर्वमीहित्वा भवतोऽपि 'शब्द एवाऽयम्' इति निश्चयज्ञानमभिमतम्। हन्त! तर्हि निश्चयज्ञानात् पूर्व 'तई' असावीहा भवद्वचनतोऽपि सिद्धा॥ इति गाथार्थः // 257 // और, 'यह शब्द ही है' इस ज्ञान को 'स्तोक' होने के कारण आपने 'अर्थावग्रह' रूप में स्वीकार किया, किन्तु वह ज्ञान अपने पूर्ववर्ती 'ईहा' के बिना सम्भव नहीं है, और ईहापूर्वक होने के कारण, उसका 'अर्थावग्रह' होना भी सम्भव नहीं होगा- इसे बता रहे हैं // 257 // किं सद्दो किमसद्दो त्तऽणीहिए सद्द एव किह जुत्तं?। ___ अह पुव्वमीहिऊणं, सद्दो त्ति मयं, तई पुव्वं // [(गाथा-अर्थ :) 'यह शब्द है या अशब्द है' -इस प्रकार (विमर्श-रूप) ईहा न हो तो 'यह शब्द ही है' -यह ज्ञान होना कैसे युक्तियुक्त होगा? और यदि (उक्त विमर्श रूप) ईहा करते हुए 'यह शब्द है' यह (निश्चय) ज्ञान हुआ -ऐसा मानते हैं तो विशेष ज्ञान से पूर्व 'ईहा' होती है (यह सिद्ध हुआ)।] व्याख्याः - यह क्या शब्द है या अशब्द (रूप आदि) है? इस प्रकार 'ईहा' न हो तो 'यह शब्द ही है' इस निश्चित ज्ञान का अकस्मात् ही उत्पन्न होना कैसे युक्तियुक्त होगा? विमर्शपूर्वक हुए बिना यह घटित नहीं हो सकता -यह भाव है। तात्पर्य यह है- 'यह शब्द ही है' यह ज्ञान तभी होता है जब शब्द-गत अन्वय-धर्मों का, तथा रूप आदि से व्यावृत्ति का ग्रहण हो, और यह ग्रहण 'विमर्श' के बिना सम्भव नहीं होता। विमर्श 'ईहा' ही है, इसलिए 'ईहा' के बिना 'शब्द ही है' -यह ज्ञान होना युक्तियुक्त नहीं। निश्चय काल से पूर्व, ईहा होने के बाद, 'यह शब्द ही है' -इस निश्चय ज्ञान का होना आपको यदि स्वीकृत है, तब तो अफसोस! निश्चय ज्ञान से पूर्व इस ईहा का होना आपके वचन से भी सिद्ध हो गया (अर्थात् आपने स्वयं मान लिया) // यह गाथा का अर्थ पूर्ण हुआ // 257 // NAL 378 -------- विशेषावश्यक भाष्य -----
SR No.004270
Book TitleVisheshavashyak Bhashya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Damodar Shastri
PublisherMuni Mayaram Samodhi Prakashan
Publication Year2009
Total Pages520
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size11 MB
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