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________________ अथ द्वितीयं मोदकोदाहरणमुच्यते, यथा एकः कोऽपि साधुर्भिक्षां पर्यटन क्वचिद् गृहे पटलकादिव्यवस्थापितानतिप्रचुरान् सुरभिस्निग्धमधुरमनोज्ञान् मोदकानद्राक्षीत्। तेन चोर्ध्वस्थितेन ते सुचिरमुद्वीक्षिताः। न च किमपि तन्मध्यालल्ब्धम्। ततः सोऽप्यविच्छिन्नतदभिलाष एव सुष्वाप।स्त्यानद्धिनिद्रोदये च रजन्यां तद्गृहं गत्वा, स्फोटयित्वा कपाटानि, मोदकान् स्वेच्छया भक्षयित्वा, उद्वरितांस्तु पतद्ग्रहके क्षिप्त्वोपाश्रयमागत्य पत द्ग्रहक स्थाने मुक्त्वा प्रसुप्तः। उत्थितेन च तथैवाऽऽलोचितं गुरूणाम्। ततः प्रत्युपेक्षणासमये भाजनादि प्रत्युपेक्षमाणेन साधुना पतद्ग्रहके दृष्टास्ते मोदकाः। ततो गुर्वादिभिर्जातोऽस्य स्त्यानर्द्धिनिद्रोदयः। तथैव च संघेन लिङ्गपाराञ्चिकं दत्त्वाऽयमपि विसर्जितः॥२॥ दन्तोदाहरणं तृतीयमुच्यते, यथा एकः साधुर्दिवा द्विरदेन खेदितः कथमपि पलाय्योपाश्रयमागतः। तं च दन्तिनं प्रत्यविच्छिन्नकोप एव निशि प्रसुप्तः। स्त्यानर्द्धिनिद्रोदयश्च जातः। तदुदये च वज्रऋषभनाराचसंहननवतः केशवार्धबलसंपन्नता समये निगद्यते / अतो नगर-कपाटानि भक्त्वा के पास अपनी आलोचना की। (अन्य) साधुओं ने भी उपाश्रय में (फेंके हुए) मांस को देखा / तब उन्हें . ज्ञात हुआ कि इस (मुनि) के स्त्यानर्द्धि निद्रा का उदय हुआ था। तब संघ ने उससे साधु-वेश छीन कर संघ से उसे निकाल दिया। यह स्त्यानर्द्धि निद्रा के उदय से सम्बन्धित प्रथम उदाहरण है। अब दूसरा मोदक-उदाहरण कहा जा रहा है। वह इस प्रकार है (2) किसी साधु ने भिक्षा हेतु विचरण करते हुए किसी घर में पटलकों (ऊपर लटकाए गए छींकों, या कई दराजों वाली पिटारियों) में अतिप्रचुर मात्रा में संभाल कर रखे हुए, सुगन्धपूर्ण, चिकने (सरस), मधुर वह सुन्दर मोदकों (लड्डुओं) को देखा / वह ऊंचे होकर (उचक-उचक कर) उन्हें देर तक देखता रहा, किन्तु उनमें से उसके कुछ भी हाथ नहीं लग पाया। बाद में, उसी अभिलाषा को निरन्तर बनाये हुए ही वह सो गया। रात को स्त्यानर्द्धि निद्रा के उदय में वह उसी घर में गया, दरवाजों को तोड़ कर (घुसा और) मोदकों को यथेच्छ खा कर, बचे हुए मोदकों को कचरे के डिब्बे (पतद्ग्रहक) में फेंक कर, उस डिब्बे को उसी जगह छोड़ कर, उपाश्रय में लौट आया और पुनः सो (लेट) गया। (निद्रा से) उठ कर उसने गुरुजनों के समक्ष, उसी तरह (प्रथम उदाहरण वाले साधु की तरह) आलोचना की। उसके बाद, प्रति लेखना के समय पात्र आदि की प्रतिलेखना करते हुए साधुओं को कचरे के डिब्बे में पड़े हुए मोदक दिखाई पड़े। तब, गुरुजनों आदि को यह ज्ञात हो गया कि इसके स्त्यानर्द्धि निद्रा का उदय हुआ था। उसी (पूर्व उदाहरण की) तरह ही, संघ ने उसे 'लिङ्गपाराश्चिक' (वेशत्याग आदि का दण्ड) देकर संघ से निकाल दिया // 2 // अब तीसरा दन्त-उदाहरण कहा जा रहा है। वह इस प्रकार है (3) एक साधु को दिन में (किसी) हाथी ने अधिक परेशान किया, वह (साधु) किसी तरह भाग कर उपाश्रय में आ गया। उस हाथी के प्रति उसका क्रोध अविच्छिन्न (ज्यों का त्यों) बना रहा और वह (उसी मानसिक अवस्था में ही) रात में सो गया। स्त्यानर्द्धि निद्रा का उदय उसे हुआ। उसका Me 344 -------- विशेषावश्यक भाष्य -----
SR No.004270
Book TitleVisheshavashyak Bhashya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Damodar Shastri
PublisherMuni Mayaram Samodhi Prakashan
Publication Year2009
Total Pages520
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size11 MB
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