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________________ ' तदेवं व्यवस्थापित चक्षुषोऽप्राप्यकारिता।अथ दृष्टान्तीकृतस्य मनसस्तदसिद्धतां परो मन्येत, इत्यतस्तस्यापि तां सिसाधयिषुः पूर्वपक्षमुत्थापयन्नाह गंतुं नेएण मणो संबज्झइ जग्गओ व सिमिणे वा। सिद्धमिदं लोयम्मि वि अमुगत्थगओ मणो मे त्ति॥२१३॥ [संस्कृतच्छाया:- गत्वा ज्ञेयेन मनः सम्बद्ध्यते जाग्रतो वा स्वप्ने वा। सिद्धमिदं लोकेऽपि अमुकार्थगतं मनो मे इति // ] 'गंतुं' देहाद् निर्गत्य ज्ञेयेन मेरुशिखरस्थजिनप्रतिमादिना संबध्यते संश्रुिष्यते मनः। कस्यामवस्थायाम्?, इत्याह- जाग्रतः, स्वप्ने वा। अनुभवसिद्धं चैतत्, न च ममैव, किन्तु सिद्धमिदं लोकेऽपि, यतस्तत्राऽप्येवं वक्तारो भवन्ति- अमुत्र मे मनो गतमिति / अतः प्राप्यकारि मनः॥ इति प्रेरकगाथार्थः॥२१३ // अत्रोत्तरमाह (मन की अप्राप्यकारिता) . इस प्रकार, नेत्र की अप्राप्यकारिता (की मान्यता) सुस्थिर कर दी गई। अब दृष्टान्त रूप में उपस्थापित मन की अप्राप्यकारिता को ही कहीं 'पर' (विरोधी पक्ष) नकार सकता है, इस (सम्भावित संकट के निवारण के) लिए उस (मन) की भी अप्राप्यकारिता को सिद्ध (निर्णीत) करने की भावना से (भाष्यकार) (पहले) पूर्वपक्ष को उपस्थापित करते हुए कह रहे हैं // 213 // गंतुं नेएण मणो संबज्झइ जग्गओ व सिमिणे वा। सिद्धमिदं लोयम्मि वि अमुगत्थगओ मणो मे त्ति॥ [(गाथा-अर्थ :) जागृत अवस्था हो या स्वप्नावस्था हो, मन (अपने) ज्ञेय से जाकर जुड़ता है। यह बात (तो) लोक (के बोलचाल) में भी प्रसिद्ध है कि मेरा मन तो अमुक पदार्थ में गया हुआ है (अतः मन भी प्राप्यकारी है- यह पूर्वपक्ष का संभावित कथन हो सकता है)।] व्याख्याः - (गत्वा) देह से निकल कर मन (अपने) ज्ञेय (पदार्थों, जैसे) मेरुशिखर-स्थित जिन-प्रतिमा आदि के साथ सम्बद्ध होता है। (प्रश्न-) किस स्थिति में? (उत्तर-) कहा- जागते हुए या सोते हुए। यह (मन का जाना) अनुभवसिद्ध है, न केवल हमें ही, अपितु, लोक में भी यह सिद्ध है, क्योंकि इस विषय में लोग कहते (हुए) भी (दृष्टिगोचर होते) हैं कि यहां (अमुक विषय में) मेरा मन चला गया था (या गया हुआ है)। अतः मन प्राप्यकारी (ही) है। पूर्वपक्ष को उपस्थापित करने वाली इस गाथा का अर्थ पूर्ण हुआ // 213 // अब (पूर्वपक्ष का भाष्यकार) उत्तर दे रहे हैं Vo, 312 -------- विशेषावश्यक भाष्य ----------
SR No.004270
Book TitleVisheshavashyak Bhashya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Damodar Shastri
PublisherMuni Mayaram Samodhi Prakashan
Publication Year2009
Total Pages520
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size11 MB
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