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________________ [नियुक्ति-गाथाः (3)] अथ नियुक्तिकार एवाऽवग्रहादीन् व्याख्यानयन्नाह अत्थाणं उग्गहणं अवग्गहं तह वियालणं ईहं। ववसायंच अवार्यधरणं पुणधारणंति॥१७९॥ [संस्कृतच्छाया:-अर्थानामवग्रहणमवग्रहं तथा विचारणमीहाम्। व्यवसायं चाऽपायं धरणं पुनर्धारणां ब्रवते // 179 // ] अर्थानां रूपादीनां प्रथमं दर्शनानन्तरमेवाऽवग्रहणमवग्रहं ब्रुवत इति संबन्धः। तथा विचारणं पर्यालोचनं 'अर्थानाम्' इति वर्तते, ईहनमीहा तां ब्रुवते। इदमुक्तं भवति- अवग्रहादुत्तीर्णोऽपायात् पूर्वं सद्भूतार्थविशेषोपादानाभिमुखोऽसद्भूतार्थविशेषत्यागसंमुखश्च, प्रायः काकनिलयनादयः स्थाणुधर्मा अत्र वीक्ष्यन्ते, न तु शिर:कण्डूयनादयः पुरुषधर्मा इति मतिविशेष ईहेति। विशिष्टोऽवसायो . व्यवसायो निश्चयस्तं व्यवसायम्, अर्थानाम्' इतीहापि वर्तते, अवायमपायं वा ब्रुवते। (अवग्रह आदि के स्वरूप) अब नियुक्तिकार ही (स्वयं) अवग्रहादि का व्याख्यान कर रहे हैं[नियुक्ति-गाथाः (3)] ||179 // अत्थाणं उग्गहणं अवग्गहं तह वियालणं ईहं। ववसायं च अवायं धरणं पुण धारणं बेति // . ' [(गाथा-अर्थ :) पदार्थों का अवग्रहण (इन्द्रियविषय के रूप में ग्रहण) 'अवग्रह' है, विचारणा 'ईहा' है, निर्णय ‘अपाय' है तथा उसे धारण करना 'धारणा' है।] . व्याख्याः - यहां 'कहते हैं' (ब्रुवते) का ईहा आदि के साथ भी सम्बन्ध करणीय है। इसी क्रम से पदार्थों की विचारणा या पर्यालोचना जो होती है, उसे 'ईहन' (पर्यालोचन) रूप होने से 'ईहा' कहते हैं। तात्पर्य यह है कि अवग्रह से आगे बढ़ कर, तथा अपाय से पूर्व सद्भूत (वस्तुतः विद्यमान) पदार्थ से सम्बद्ध 'विशेष' को ग्रहण करने हेतु अभिमुख, और असद्भूत (अविद्यमान) पदार्थ से सम्बद्ध 'विशेष' का त्याग करने हेतु संमुख, जैसे (संमुखदृष्ट पदार्थ में) प्रायः कौओं के घोंसले आदि स्थाणु (वृक्ष) सम्बन्धी धर्म तो दिखाई पड़ रहे हैं, किन्तु सिर खुजलाने आदि पुरुषगत धर्म नहीं, (ऐसी स्थिति में यह क्या है?) इस प्रकार का जो विशेष मतिज्ञान है, वह 'ईहा' है। (ईहा के बाद जो) विशिष्ट अवसाय, व्यवसाय या निश्चय हो जाना है, यह निश्चय पदार्थों का होता है, इस अवसायादि को ही 'अवाय' या 'अपाय' कहते हैं। Ma 262 -------- विशेषावश्यक भाष्य --- ------
SR No.004270
Book TitleVisheshavashyak Bhashya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Damodar Shastri
PublisherMuni Mayaram Samodhi Prakashan
Publication Year2009
Total Pages520
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size11 MB
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