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________________ कुतो न घटते?, इत्याह दव्वसुयं बुद्धीओ सा वि तओ जमविसेसओ तम्हा। भावसुयं मइपुव्वं दव्वसुयं लक्खणं तस्स // 112 // [संस्कृतच्छाया:- द्रव्यश्रुतं बुद्धेः साऽपि ततो यदविशेषतस्तस्मात् / भावश्रुतं मतिपूर्वं द्रव्यश्रुतं लक्षणं तस्य॥] यदिति यस्मात् कारणाद् यथा द्रव्यश्रुतं शब्दो बुद्धेर्मतेः सकाशाद् भवतीति भवद्भिः प्रतिपाद्यते, तथा हन्त! साऽपि बुद्धिस्ततः शब्दात् श्रोतुर्भवत्येव। ततश्च 'मइपुव्वं सुयमुत्तं न मई सुयपुब्विया विसेसोऽयं' इति-श्रुतयोर्भेदप्रतिपादनार्थं योऽसौ विशेषोऽत्र प्रतिपादयितुं प्रस्तुतः, स द्वयोरप्यन्योन्यं पूर्वभावितायाः समानत्वाद् न प्राप्नोति, इत्यनन्तरगाथापर्यन्तावयवेन संबन्धः / तस्मात् तेषां मतेऽविशेषतः कारणाद् यदस्माभिः प्राक् समर्थितम्- भावश्रुतं मतिपूर्वमिति, तदेव युक्तियुक्तम्। शब्दलक्षणं तु द्रव्यश्रुतं तस्य भावश्रुतस्य लक्ष्यते गम्यतेऽनेनेति लक्षणं लिङ्गम् // इति गाथार्थः॥११२॥ मतिज्ञान का शब्द के साथ भी भेद क्यों नहीं घटित होता? इस शंका को दृष्टि में रखकर उसका प्रत्युत्तर दे रहे हैं (112) * दव्वसुयं बुद्धीओ सा वि तओ जमविसेसओ तम्हा। ... * भावसुयं मइपुव्वं दव्वसुयं लक्खणं तस्स // [(गाथा-अर्थः) द्रव्यश्रुत मति ज्ञान से होता है और मतिज्ञान भी द्रव्यश्रुत से होता है, अतः इन दोनों में कोई अन्तर नहीं रह जाएगा। इसलिए (यही कहना युक्तियुक्त है कि) भावश्रुत मतिपूर्वक है, और द्रव्यश्रुत तो उस (भावश्रुत) का लक्षण (लिङ्ग) है।] - . व्याख्याः- (यत्) चूंकि वस्तुस्थिति तो यह है कि जिस प्रकार शब्द रूप द्रव्यश्रुत बुद्धि यानी मतिज्ञान से उत्पन्न होता है- ऐसा आप प्रतिपादन करते हैं, तो (दया के पात्र! यह भी तो समझो कि) श्रोता.को वह मतिज्ञान भी तो उस शब्द से होता (दृष्टिगोचर) है। तब तब श्रुत को मतिपूर्वक कहा गया है, मतिज्ञान श्रुतपूर्वक नहीं होता, यही इन दोनों में अन्तर है' -इस प्रकार मति व श्रुत में परस्पर भेद के प्रतिपादन हेतु जो अन्तर (पूर्वगाथा-105 में) आपने बताया, वह अन्तर तो उनमें घटित नहीं होता, क्योंकि एक दूसरे की पूर्वभाविता की दृष्टि से दोनों (मति व श्रुत) समान हैं- इस कथन का सम्बन्ध पूर्वोक्त गाथा में आए 'न च विशेषः' (कोई भेद नहीं रहता) इस पद के साथ समझना चाहिए। इसलिए (निष्कर्ष यह है कि) उन (शंकाकारों यानी अन्य व्याख्याताओं) के मत में कोई ऐसा कारण नहीं है जो मति व श्रुत में भेद प्रतिपादित कर सके, अतः मतिपूर्वक भावश्रुत है, यह कथन, जिसका हमने पहले समर्थन किया है, (वही) युक्तियुक्त है। शब्दात्मक द्रव्यश्रुत तो उस भावश्रुत का लक्षण है, अर्थात् उस (भावश्रुत) को जानने के लिए (उसके अस्तित्व का साधक) एक साधन या चिन्ह है। यह गाथा का अर्थ पूर्ण हुआ // 112 // -- विशेषावश्यक भाष्य -- ---- 179
SR No.004270
Book TitleVisheshavashyak Bhashya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Damodar Shastri
PublisherMuni Mayaram Samodhi Prakashan
Publication Year2009
Total Pages520
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size11 MB
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