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________________ अथाऽवधेर्युत्पादनार्थमाह तेणावहीयए तम्मि वाऽवहाणं तओऽवही सो य मज्जाया। जं तीए दव्वाइ परोप्परं मुणइ तओऽवहित्ति // 82 // [संस्कृतच्छाया:- तेनावधीयते तस्मिन् वाऽवधानं ततोऽवधिः स च मर्यादा। यत् तेन द्रव्यादि परस्परं जानाति ततोऽवधिः॥] ततः कारणादवधिरित्युच्यते। यतः किम्?, इत्याह- 'तणावहीयए त्ति' अवशब्दस्याऽव्ययत्वेनाऽनेकार्थत्वादधोऽधो विस्तृतं धीयते परिच्छिद्यते रूपि वस्तु तेन ज्ञानेनेत्यवधिः, अथवा अव-मर्यादया एतावत्क्षेत्रं पश्यन्, एतावन्ति द्रव्याणि, एतावन्तं कालं पश्यतीत्यादिपरस्परनियमितक्षेत्रादिलक्षणया धीयते परिच्छिद्यते रूपि वस्तु तेनेत्यवधिः। तम्मि व त्ति' अथवा अवशब्दस्यार्थद्वयं तथैवाऽवधीयते जीवेन तस्मिन् सति वस्त्वित्यवधिः। अकारस्य लुप्तस्याऽदर्शनात् 'अवहाणं' ति वा शब्दोऽनुवर्तते, ततश्चाऽथवाऽवधानमवधिः साक्षादर्थपरिच्छेदनमित्यर्थः, अथवाऽवधीयते तस्माज्जीवेन साक्षाद् वस्त्वित्यवधिरित्युपलक्षणव्याख्यानात् स्वयमेव द्रष्टव्यम्। सो यमज्जायत्ति' स चोक्तस्वरूपोऽवधिर्मर्यादयाऽर्थपरिच्छेदने प्रवर्तमानत्वादुपचारतो मर्यादा। एतदेवाह- 'जं तीए इत्यादि'। पुंलिङ्गोप्यवधिशब्दः प्राकृतत्वात् स्त्रीत्वेन निर्दिष्टः। अब ‘अवधि' (शब्द) की व्युत्पत्ति का कथन (निर्वचन) कर रहे हैं 82 // तेणावहीयए तम्मि वाऽवहाणं तओऽवही सो य मज्जाया। ___जं तीए दव्वाइ परोप्परं मुणइ तओऽवहित्ति // [(गाथा-अर्थः) जिसके द्वारा या जिसके होने पर 'अवधान' (ठहराव, सीमा) हो- वह 'अवधि' है जो मर्यादा रूप (अर्थ को वहन करता) है। अतः (चूंकि) जो द्रव्यादि को परस्पर मर्यादा के साथ जानता है, इस कारण उसे 'अवधि' (ज्ञान) कहा जाता है।] व्याख्याः - इस कारण से 'अवधि' कहा जाता है। किस कारण से? उत्तर है- (तेन अवधीयते)अवधि में 'अव' यह अव्यय है जिसके अनेक अर्थ होते हैं। यहां (ग्राह्य) अर्थ है- नीचे-नीचे विस्तृत। जिस ज्ञान से अव नीचे-नीचे विस्तृत रूप में, धि रूपी पदार्थ को जानता है, इसलिए उसे अवधि (ज्ञान) कहते हैं। अथवा, (अव=) यानी मर्यादित रूप में, -जैसे इतना (मर्यादितसीमित) क्षेत्र, इतने द्रव्य, या इतने कालपर्यन्त- इत्यादिरूप में नियत क्षेत्र आदि रूप में- (धि यानी) जिसके द्वारा 'रूपी' वस्तु जानी जाती है, वह अवधि (ज्ञान) है। (तस्मिन् वा-) अथवा अव शब्द के बताए गए दो अर्थों (मर्यादित, नीचे-नीचे विस्तृत) के अनुरूप, जिसके सद्भाव में जीव (आत्मा) द्वारा वस्तु जानी जाती है, वह अवधि है। (वाऽवधानम् इस पद में सन्धि-नियमों के अनुसार) अवधान के आदि अकार का लोप हो गया है। अवधान के बाद 'वा' (इस पद) की अनुवृत्ति की जाती है, इसलिए अर्थ होगाअवधि या अवधान, जिसका तात्पर्य है- साक्षात् अर्थ-बोध / पूर्ण वाक्यार्थ होगा- अथवा जिसके द्वारा जीव वस्तु को साक्षात् जानता है, वह अवधि है, इत्यादि अर्थ को प्रस्तुत उपलक्षणात्मक व्याख्यान के ---------- विशेषावश्यक भाष्य --- ---- 129 र
SR No.004270
Book TitleVisheshavashyak Bhashya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Damodar Shastri
PublisherMuni Mayaram Samodhi Prakashan
Publication Year2009
Total Pages520
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size11 MB
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