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________________ तदेवमाभिनिबोधिकशब्दवाच्यं ज्ञानमुक्तम्। अथवा ज्ञानम्, क्षयोपशमः, आत्मा वा तद्वाच्य इति दर्शयन्नाह तं तेण तओ तम्मि व सो वाऽभिणिबुज्झए तओ वा तं। तं तेण तओ तम्मि व सुणेइ सो वा सुअं तेणं॥८१॥ [संस्कृतच्छाया:- तद् तेन ततस्तस्मिन् वा स वाऽभिनिबुध्यते ततो वा तत् / तत् तेन ततस्तस्मिन् वा शृणोति स वा श्रुतं तेन।] 'तंति' आभिमुख्येन निश्चितत्वेनाऽवबुध्यते संवेदयते आत्मा तदित्यभिनिबोधोऽवग्रहादिज्ञानं, स एवाऽऽभिनिबोधिकम्। अथवा आत्मा तेन प्रस्तुतज्ञानेन, तदावरणक्षयोपशमेन वा करणभूतेन घटादि वस्त्वभिनिबुध्यते, तस्माद् वा प्रकृतज्ञानात्, क्षयोपशमाद्वाऽभिनिबुध्यते, तस्मिन् वाऽधिकृतज्ञाने, क्षयोपशमे वा सत्यभिनिबुध्यतेऽवगच्छतीत्यभिनिबोधो ज्ञानं, क्षयोपशमो वा। 'सो वाऽभिणिबुज्झएत्ति' अथवाऽभिनिबुध्यते वस्त्वभिगच्छतीत्यभिनिबोधः / असावात्मैव, ज्ञान-ज्ञानिनोः कथञ्चिदव्यतिरेकादिति, स एवाऽऽभिनिबोधिकम्। इस प्रकार, 'आभिनिबोधिक' इस शब्द का अर्थ बताया गया। अथवा ज्ञान, क्षयोपशम या . आत्मा -ये भी 'आभिनिबोधिक' शब्द के अर्थ हैं- इसका प्रतिपादन (आगे की गाथा में) कर रहे हैं // 81 // तं तेण तओ तम्मि व सो वाऽभिणिबुज्झए तओ वा तं / तं तेण तओ तम्मि व सुणेइ सो वा सुअं तेणं // . [(गाथा-अर्थः) अथवा उसको, उसके द्वारा, उससे (अनन्तर), उसके होने से या उसके होने पर (आत्मा) जानता है, या (आत्मा द्वारा) वस्तु जानी जाती है- इस कारण से वह 'आभिनिबोधिक' ज्ञान (कहा जाता है। इसी प्रकार, उसको, उसके द्वारा, उर के होने से या उसके होने पर (आत्मा द्वारा) सुना जाता है या (आत्मा) सुनता है- इस कारण से वह 'श्रुत' (कहा जाता) है।] - व्याख्याः- (तत् तेन...) (ज्ञेय पदार्थ की ओर) अभिमुखता व निश्चयात्मकता के साथ आत्मा जिसका संवेदन करता है-उस अवग्रह आदि बान को 'अभिनिबोध' और उसे ही 'अ (रूप में, पूर्व गाथा द्वारा) कहा गया है। अथवा (पूर्वोक्त व्युत्पत्ति के अतिरिक्त भी व्युत्पत्ति इस प्रकार हैं, जैसे-) उस प्रस्तुत (पूर्व वर्णित) ज्ञान या तदावरण-सम्बन्धी क्षयोपशम रूपी करण (साधन) द्वारा, या उस (प्रकृत ज्ञान या तत्सम्बन्धी क्षयोपशम) के (अव्यवहित) अनन्तर, या उसके होने पर आत्मा घट आदि वस्तु को जानता है, वह ज्ञान या तत्सम्बन्धी क्षयोपशम (भी) 'अभिनिबोध' (कहा जाता) है। (स वा अभिनिबुध्यते) अथवा जो वस्तु को जानता है, वह अभिनिबोध' है, वह (ज्ञान) भी आत्मा ही है, क्योंकि ज्ञान व ज्ञानी में अभेद है, अतः वह (आत्मा) भी 'आभिनिबोधिक' (शब्द का वाच्य) है। --------- विशेषावश्यक भाष्य ---- 127
SR No.004270
Book TitleVisheshavashyak Bhashya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Damodar Shastri
PublisherMuni Mayaram Samodhi Prakashan
Publication Year2009
Total Pages520
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size11 MB
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