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________________ नामाइभेअसहत्थबुद्धिपरिणामभावओ निययं। जं वत्थुमत्थि लोए चउपज्जायं तयं सव्वं // 73 // [संस्कृतच्छाया:- नामादिभेदशब्दार्थ-बुद्धिपरिणामभावतो नियतम्। यद् वस्त्वस्ति लोके चतुष्पर्यायं तत् सर्वम॥] घट-पटादिकं यत् किमपि वस्त्वस्ति लोके, तत् सर्वं प्रत्येकमेव नियतं निश्चितं चत्वारः पर्याया नामाऽऽकार-द्रव्यभावलक्षणा यत्र तच्चतुष्पर्यायम्, न पुनर्यथा नामादिनयाः प्राहुर्यथा-केवलनाममयं वा, केवलाकाररूपं वा, केवलद्रव्यताश्लिष्टं वा, केवलभावात्मकं वेति भावः। कुतश्चतुष्पर्यायमेव?, इत्याह- 'नामाइभेअ-इत्यादि / नामादिभेदेष्वेकत्वपरिणतिसंवलितनामाऽऽकारद्रव्य-भावेष्वेवेत्यर्थः, शब्दश्चाऽर्थश्च बुद्धिश्च शब्दाऽर्थबुद्धयस्तासां परिणामस्तस्य भावः सद्भावस्तस्मात्, नामादिभेदेषु समुदितेष्वेव योऽयं शब्दाऽर्थ-बुद्धीनां परिणामसद्भावस्तस्माद्धेतोः सर्वं चतुष्पर्यायं वस्त्वित्यर्थः। प्रयोगः- यत्र शब्दाऽर्थ-बुद्धिपरिणामसद्भावः, तत् सर्वं चतुष्पर्यायम्, चतुष्पर्यायत्वाभावे शब्दादिपरिणामभावोऽपि न दृष्टः, यथा शशशृङ्गे, तस्माच्छब्दादिपरिणामसद्भावे सर्वत्र चतुष्पर्यायत्वं निश्चितमिति भावः। // 73 // नामाइभेअसद्दत्थ-बुद्धिपरिणामभावओ निययं। . जं वत्थुमत्थि लोए, चउपज्जायं तयं सव्वं // [(गाथा-अर्थः) जो कुछ भी संसार में 'वस्तु' है, वह सब निश्चित ही चतुष्पर्यायात्मक है, क्योंकि नाम आदि (चतुर्विध) भेदात्मक (एकत्व-संवलित) वस्तु में ही शब्द, अर्थ, बुद्धि -इनकी परिणति (सम्भव) होती है।] व्याख्याः- घट-पट आदि जो कुछ भी वस्तु लोक में है, वह सब प्रत्येक वस्तु निश्चित रूप से चतुष्पर्यायात्मक है, अर्थात् नाम, आकार, द्रव्य व भाव -इन चार पर्यायों का समुदित रूप है, न कि जैसा (प्रत्येक) नाम आदि नय जैसा बता रहे हैं कि वस्तु केवल नामनय है, या केवल आकाररूप है या केवल द्रव्यतायुक्त (द्रव्यता रूप) है या केवल भाव-रूप है। (प्रश्न-) क्यों चतुष्पर्यायात्मक ही है? उत्तर है- 'नामादिभेदात्मक' इत्यादि / अर्थात नाम आदि (चार) भेदों में एकत्वपरिणति से युक्त नाम, आकार, द्रव्य व भावों में ही, शब्द, अर्थ, बुद्धि -इन (तीनों) के परिणाम का भाव यानी सद्भाव है, इसलिए। तात्पर्य यह है कि चूंकि नाम आदि समुदित भेदों में ही यह जो शब्द, अर्थ या बुद्धि के परिणाम का सद्भाव है, इसलिए समस्त वस्तु चतुष्पर्यायात्मक है। यहां (साधक अनुमान का) प्रयोग इस प्रकार है- जहां शब्द, अर्थ व बुद्धि के परिणामों का सद्भाव है, वह सभी चतुष्पर्यायात्मक है, चतुष्पर्यायरूपता के न होने पर शब्द आदि परिणाम नहीं दृष्टिगोचर होते, जैसे खरगोश के सींग में / अतः (इस अनुमान के आधार पर) शब्दादि परिणाम के सद्भाव में सर्वत्र चतुष्पर्यायता निश्चित होती है- यह तात्पर्य है। Na 114 -------- विशेषावश्यक भाष्य ----------
SR No.004270
Book TitleVisheshavashyak Bhashya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Damodar Shastri
PublisherMuni Mayaram Samodhi Prakashan
Publication Year2009
Total Pages520
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size11 MB
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