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________________ [संस्कृतच्छाया:- अभिधानं द्रव्यत्वं तदर्थशून्यत्वं च तुल्यानि। को भाववर्जितानां नामादीनां प्रतिविशेष:?] भाववर्जितानां भावमेकं वर्जयित्वा शेषाणां नामादीनां नाम-स्थापना-द्रव्याणामित्यर्थः, कः प्रतिविशेषः? न कश्चिदित्यर्थः। कुतः?, इति चेत् / उच्यते- यत एतानि त्रिष्वपि तुल्यानि। कानि पुनस्तानि?, इत्याह- अभिधानं तावद् नाम त्रिष्वपि तुल्यम्, नामवति पदार्थे, स्थापनायां, द्रव्ये च मङ्गलाभिधानमात्रस्य सर्वत्र भावात्। तथा द्रव्यत्वमपि त्रिष्वपि तुल्यम्, यतो "जस्स णं जीवस्स वा अजीवस्स वा मंगलं ति नाम कीरइ" इत्यादिवचनाद् नामनि तावद् द्रव्यमेवाऽभिसंबध्यते, स्थापनायामपि “यत् स्थाप्यते" इति वचनाद् द्रव्यमेवाऽऽयोज्यते, द्रव्ये तु द्रव्यत्वं विद्यत एव, इति त्रिष्वपि द्रव्यत्वस्य तुल्यता। तथा तदर्थशून्यत्वं च भावार्थशून्यत्वं च त्रिष्वपि समानम्, नाम-स्थापना-द्रव्येषु भावमङ्गलस्याऽभावात्। तस्मादभिधान-द्रव्यत्व-भावार्थशून्यत्वानां समानत्वाद् नाम-स्थापना-द्रव्याणां परस्परमभेदः, भावे तु तदर्थशून्यत्वं नास्ति, इत्येतावताऽसौ नामादिभ्यो विशेष्यत इति भावः॥ इति गाथार्थः॥५२॥ परेणैवमविशेषे प्रेरिते यो विशेषः, तमभिधित्सुः सूरिराह [(गाथा-अर्थः) भावमङ्गल को छोड़कर (अवशिष्ट) नाम आदि तीन मङ्गलों में, अभिधान (नाम), द्रव्यत्व व तदर्थशून्यता -ये तीनों समान रूप से हैं, अतः इन (नामादि तीन मङ्गलों) में (परस्पर) कौन सी विशेषता- भिन्नता है?] व्याख्याः- 'भाव' रहित यानी एक 'भाव' को छोड़कर, शेष नामादि, यानी नाम मङ्गल, स्थापनामङ्गल व द्रव्यमङ्गल, इनमें कौन सी विशेषता-भिन्नता है? अर्थात् कोई भी भिन्नता नहीं है। कैसे? बता रहे हैं- चूंकि ये तीनों (मङ्गल) इन तीन बातों में समान हैं? कौन-सी.तीन बातें? बता रहे हैं- अभिधान यानी नाम तीनों में समान है, क्योंकि नामयुक्त पदार्थ में, स्थापना में तथा द्रव्य में 'मङ्गल' यह नाम सर्वत्र समान रूप से व्यवहृत है। इसी प्रकार, द्रव्यत्व भी तीनों में समान है, क्योंकि “जिस जीव या अजीव का' 'मङ्गल' यह नाम रखा जाता है" (द्रष्टव्य, पूर्व गाथा-२६) इस वचन से नाम (निक्षेप) में द्रव्य का ही सम्बन्ध होता है, स्थापना (निक्षेप) में भी 'जो स्थापित किया जाता है। इस वचन से द्रव्य का सम्बन्ध है. द्रव्य (निक्षेप) में तो द्रव्यत्व (स्वतः) है ही. अतः तीनों में द्रव्यत्व समानरूप से है। तथा 'तदर्थशून्यता' यानी भावमङ्गलरहितता तीनों में समान रूप से है, क्योंकि नाम-स्थापना-द्रव्य -इन तीनों में भावमङ्गल का अभाव है। इसलिए, अभिधान, द्रव्यत्व व भावशून्यता- इन तीनों के समानरूप से रहने के कारण, नाम, स्थापना व द्रव्य में परस्पर अभिन्नता है, भाव में तो तदर्थशून्यता नहीं है, इसलिए वह (प्रथम तीन) नाम आदि से भिन्न है- यह तात्पर्य है | यह गाथा का अर्थ पूर्ण हुआ // 92 // इस प्रकार किसी अन्य (शिष्य आदि) द्वारा अविशेषता यानी समानता बताये जाने पर इनमें जो भिन्नता-विशेषता है, उसे आचार्य कह रहे हैं Ma 86 -------- विशेषावश्यक भाष्य ----------
SR No.004270
Book TitleVisheshavashyak Bhashya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Damodar Shastri
PublisherMuni Mayaram Samodhi Prakashan
Publication Year2009
Total Pages520
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size11 MB
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