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________________ प्रकारान्तरेणाऽपि नोआगमतो भावमङ्गलमाह अहवा सम्मइंसण-नाण-चरित्तोवओगपरिणामो। नोआगमओ भावो नोसद्दो मिस्सभावम्मि॥५०॥ [संस्कृतच्छाया:- अथवा सम्यग्दर्शन-ज्ञान चारित्रोपयोगपरिणामः। नोआगमतो भावो नोशब्दो मिश्रभावे॥] अथवा प्रतिक्रमण-प्रत्युपेक्षणादिक्रियां कुर्वाणस्य यो ज्ञान-दर्शन-चारित्रोपयोगपरिणामः, स नोआगमतो भावो भावमङ्गलं भवति। नोशब्दश्चाऽत्र मिश्रववचनः, यस्माद् नाऽसौ ज्ञान-दर्शन-चारित्रपयोगपरिणाम: केवल एवाऽऽगमः, चारित्रादेरपि सद्भावात्, नाऽप्यनागम एव, ज्ञानस्याऽपि विद्यमानत्वात्, इति मिश्रता // इति गाथार्थः॥५०॥ अथाऽन्येन प्रकारेणाह अहवेह नमुक्काराइनाण-किरिआविमिस्सपरिणामो। नोआगमओ भण्णइ, जम्हा से आगमो देसे॥५१॥ (नोआगम भावमङ्गल) प्रकारान्तर से भी नो आगम से भावमङ्गल का कथन कर रहे हैं (50) अहवा सम्मइंसण-नाण-चरित्तोवओगपरिणामो। नोआगमओ भावो नोसद्दो मिस्सभावम्मि // [(गाथा-अर्थः) अथवा सम्यग्दर्शन-ज्ञान और चारित्र का उपयोग रूप परिणाम 'नो आगम से भावमङ्गल' है। यहां 'नो' शब्द 'मिश्र' अर्थ में प्रयुक्त है (ऐसा समझना चाहिए)।] व्याख्याः- अथवा प्रतिक्रमण-प्रतिलेखन आदि क्रिया करने वाले का जो ज्ञान-दर्शन-चारित्र उपयोग परिणाम है, वह 'नो आगम से भाव' यानी भावमङ्गल है। यहां 'नो' शब्द मिश्र अर्थ का वाचक है। चूंकि उक्त परिणाम केवल आगम-रूप ही नहीं है, क्योंकि वहां चारित्र आदि का भी सद्भाव है। और उक्त परिणाम सर्वथा 'अनागम' भी नहीं है, क्योंकि वहां 'ज्ञान' की भी विद्यमानता है। अतः (ज्ञान रूप आगम व ज्ञानेतर चारित्र आदि के होने से) यहां मिश्र रूप है। यह गाथा का अर्थ हुआ // 50 // अब अन्य प्रकार से भी (भावमङ्गल का) कथन कर रहे हैं (51) अहवेह नमोक्काराइनाण-किरिआविमिस्सपरिणामो। नोआगमओ भण्णई, जम्हा से आगमो देसे // Ma 84 -------- विशेषावश्यक भाष्य ----------
SR No.004270
Book TitleVisheshavashyak Bhashya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Damodar Shastri
PublisherMuni Mayaram Samodhi Prakashan
Publication Year2009
Total Pages520
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size11 MB
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