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________________ अत्राऽर्थे उपपत्तिमाह हेऊ विरुद्धधम्मत्तणा हि जीवो व्व चेअणारहिओ। न य सो मङ्गलमिटुं तयत्थसुन्नोत्ति पावं व॥४३॥ [संस्कृतच्छाया:- हेतुर्विरुद्धधर्मत्वाद् हि जीव इव चेतनारहितः। न च स मङ्गलमिष्टं तदर्थशून्य इति पापमिव॥] जानन्ननुपयुक्तश्चेत्येतदवस्तु इत्यस्यामनन्तरातिक्रान्तगाथापर्यन्तकृतप्रतिज्ञायामयं हेतुः। क:?, इत्याह- 'विरुद्धधम्मत्तणा हि त्ति' विरुद्धौ धौ यत्र तत् तथा तद्भावस्तस्माद् विरुद्धधर्मत्वादिति। दृष्टान्तमाह- यथा जीवश्चेतनारहितः। इदमुक्तं भवति- यथा जीवश्चेतनारहितश्च, माता च वन्ध्या चेत्यादि विरुद्धधर्माध्यासादवस्तु, एवं ज्ञायकश्चाऽनुपयुक्तश्चेत्येतदप्यवस्त्वेव। भवतु वा ज्ञायकोऽनुपयुक्तश्च, तथापि नास्माकमसौ मङ्गलत्वेनेष्टः, तदर्थशून्यत्वाद् मङ्गलार्थशून्यत्वात्, पापवदिति। भावमङ्गलग्राहिणो ह्यमी कथं द्रव्यमङ्गलमिच्छन्ति?, इति भावः। इति गाथार्थः॥४३॥ पूर्वोक्त कथन में (उचित हेतु, दृष्टान्त आदि के रूप में) युक्ति प्रस्तुत की जा रही है (43) हेऊ विरुद्धधम्मत्तणा हि जीवो व्व चेअणारहिओ। .. न य सो मङ्गलमिटुं तयत्थसुन्नोत्ति पावं व // [(गाथा-अर्थः) (पूर्वोक्त कथन में) विरूद्धधर्मत्व हेतु है। दृष्टान्त है- चेतनारहित जीव-ऐसाकहना। (अर्थात् जीव है और वह चेतनारहित है- यह कथन विरूद्धधर्मयुक्त होने से असद्रूप है, वैसे ही 'ज्ञायक है और उपयोगरहित है'-यह कथन भी असद्-रूप है।) उस (ज्ञायक व उपयोगरहित वक्ता) की द्रव्यमङ्गलता, चूंकि वह मङ्गलार्थ से शून्य है, इसलिए उसी तरह इष्ट नहीं है जिस तरह 'पाप' (की मङ्गलता इष्ट नहीं है)। . व्याख्या:- जानता हुआ भी उपयोगरहित है- यह 'अवस्तु' (अवास्तविक) है- इस पूर्वोक्त गाथा में की गई प्रतिज्ञा में यह हेतु है। वह क्या है? इस (प्रश्न के समाधान) के लिए कहाविरूद्धधर्मत्वात् / विरूद्ध जो परस्पर दो धर्म, वह जहां हो, ऐसा होना- यह हेतु है। दृष्टान्त का कथन किया जा रहा है- जैसे, 'जीव चेतनारहित है' यह कथन / कहने का तात्पर्य यह है- जैसे 'जीव चेतनारहित है' और 'माता वन्ध्या है' -ये कथन अवस्तु हैं, वैसे ही 'ज्ञायक है और वह उपयोगरहित है' यह कथन भी अवस्तु-विषयक है। चलो, ज्ञायक और उपयोगरहित कोई हो भी, तो भी वह मङ्गल-अर्थ से शून्य होने से, पाप की तरह, 'मङ्गल' के रूप में हमें अभीष्ट नहीं है। भावमङ्गल को ग्रहण करने वाले (ये नय) द्रव्यमङ्गल को कैसे चाहेंगे? (अर्थात् कभी नहीं) -यह भाव है। यह गाथा का अर्थ हुआ // 43 // विशेषावश्यक भाष्य - ---- 73
SR No.004270
Book TitleVisheshavashyak Bhashya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Damodar Shastri
PublisherMuni Mayaram Samodhi Prakashan
Publication Year2009
Total Pages520
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size11 MB
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