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________________ [संस्कृतच्छाया:- यदि ज्ञानमागमः तस्मात्कथं द्रव्यं, द्रव्यमागमः कथं नु? / आगमकारणमात्मा देहः शब्दो यतो द्रव्यम्॥] यदि मङ्गलशब्दार्थज्ञानमागमः, तर्हि तद्वक्ताऽसौ कथं द्रव्यमङ्गलम्?, आगमस्य भावमङ्गलत्वेन द्रव्यमङ्गलत्वानुपपत्तेः। अथ द्रव्यम्- द्रव्यमङ्गलमसौ तर्हि आगमः कथम्? येनाऽऽगमत आगममाश्रित्येत्युच्यते, द्रव्ये आगमस्याऽभावात्, भावे वा ' भावमङ्गलत्वप्रसङ्गात्। तस्मादागमतो द्रव्यमङ्गलमिति दूरविरुद्धमिदम् / इति परेणोक्ते आचार्यः प्राह- आगमेत्यादि। इदमुक्तं भवति- आगमत इत्युक्तेनैतद् भवता बोद्धव्यं यदुत- न साक्षादेवाऽऽगमोऽत्राऽस्ति, किं तर्हि?, आगमस्य. मङ्गलशब्दार्थज्ञानलक्षणस्य यत् कारणं निमित्तं तदेवेह विद्यत इत्यवगन्तव्यम्। किं पुनस्तदागमस्य कारणमिहाऽवसेयम्?, इत्याहअनुपयुक्तस्य वक्तुःसंबन्धी आत्मा, जीवो, देहः शब्दश्च, जीवशरीरे हि तावदागमस्य कारणम्, तदाधारविरहितस्याऽऽगमस्याऽसंभवात्। शब्दोऽपि प्रत्याय्य शिष्यगताऽऽगमस्य कारणमेव, तमन्तरेण तस्याऽभावात्। यच्च कारणं तद् द्रव्यं भवत्येव "भूतस्य भाविनो वा भावस्य हि कारणं तु यल्लोके, तद् द्रव्यम्" इत्यादिवचनात्, इत्याह- 'तो त्ति-' यत एवम्, तस्माद् द्रव्यं द्रव्यमङ्गलमिदमित्यर्थः।। [(गाथा-अर्थः) यदि ज्ञान आगम है तो फिर वह 'द्रव्य' कैसे? यदि वह 'द्रव्य' है तो 'आगम' किस प्रकार से है? (उत्तर-) आत्मा, देह और (जीव-) शब्द- ये आगम के कारणं हैं, इसलिए ये 'द्रव्य' हैं। व्याख्याः- यदि मङ्गलशब्दार्थ-सम्बन्धी ज्ञान 'आगम' है तो उसका वक्ता (प्ररूपण-कर्ता) कैसे 'द्रव्यमङ्गल' हुआ? क्योंकि आगम तो भावमङ्गलरूप होता है, उसमें द्रव्यमङ्गलपना संगत नहीं होता। और चलो मान भी लिया कि वह द्रव्य यानी द्रव्यमङ्गल है, तो फिर वह 'आगम' कैसे? (और आगम नहीं, तो) उसका आश्रयण कर (ज्ञानवान् को) 'आगमतः द्रव्यमङ्गल' कहना कैसे संगत है? क्योंकि यदि वह 'द्रव्य' है तो (उसमें) आगमता का अभाव होगा, और यदि वह भावरूप है तो (द्रव्यमङ्गल न होकर, उसमें) भावमङ्गलपना प्रसक्त होगा। इसलिए 'आगम से द्रव्यमङ्गल' यह कहना अत्यन्त अन्तर्विरोधपूर्ण है। किसी अन्य द्वारा ऐसा (प्रश्न) कहने पर आचार्य (भाष्यकार) ने . . (समाधान-हेतु) कहा- आगमकारणमात्मा। आचार्य का कथन (तात्पर्य) यह है कि 'आगम' कहने से आप यह समझें कि यहां साक्षात् आगम नहीं है। (प्रश्न-) तो फिर क्या है? (उत्तर-) आगम यानी मङ्गल-शब्दार्थ सम्बन्धी ज्ञान, उसका कारण या निमित्त जो है, वही यहां (आगमरूप से अभिप्रेत) है- ऐसा समझें। (प्रश्न-) तो फिर यह बताएं कि आगम का कौन-सा कारण यहां लेना है? इस (प्रश्न के समाधान के लिए कहाअनुपयुक्त (उपयोगरहित) वक्ता से सम्बन्धित आत्मा, जीव, देह व (जीव-) शब्द (-ये आगम के कारण हैं, आधारभूत हैं)। (इनमें) जीव और शरीर तो आगम के कारण हैं ही, क्योंकि उनके बिना (आगम) सम्भव नहीं है। शब्द भी शिष्य को (अर्थ) समझा कर शिष्यगत 'आगम' का कारण है। और जो भी कारण होता है, वह 'द्रव्य' होता ही है, क्योंकि कहा गया है कि 'भूत व भावी भाव का जो भी लोक में कारण होता है, वह 'द्रव्य' होता है'। इसी बात को (गाथा में) कहा- यतो (द्रव्यम्)। अर्थात् चूंकि ऐसा है (अर्थात् वे आगम के कारण हैं), इसलिए (वे) द्रव्य यानी द्रव्यमङ्गल हैं- यह भाव है। Ma 58 -------- विशेषावश्यक भाष्य ----------
SR No.004270
Book TitleVisheshavashyak Bhashya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Damodar Shastri
PublisherMuni Mayaram Samodhi Prakashan
Publication Year2009
Total Pages520
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size11 MB
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