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________________ जह मंगलमिह नामंजीवा-ऽजीवोभयाण देसीओ। रूढं जलणाईणं ठवणाए सोस्थिआईणं // 27 // [संस्कृतच्छाया:- यथा मङ्गलमिह नाम जीवाजीवोभयानां देशीतः। रूढं ज्वलनादीनां स्थापनायाः स्वस्तिकादीनाम्॥] . यथाशब्द उदाहरणोपन्यासार्थः। क्व यथा?, इत्याह- जीवा-ऽजीवोभयानां ज्वलनादीनां देशीतो देशीभाषया मङ्गलमिति . नाम रूढम्, तत्र जीवस्याऽग्नेर्मङ्गलमिति नाम रूढम्, सिन्धुविषयेऽजीवस्य दवरकवलनकस्य मङ्गलमिति नाम रूढम्, लाटदेशे जीवाजीवोभयस्य तु मङ्गलमिति नाम रूढं वन्दनमालायाः, दवरिकादीनामिहाऽचेतनत्वात्, पत्रादीनां तु सचेतनत्वाज्जीवाजीवोभयत्वं भावनीयम्। स्वस्तिकादीनां तु या स्थापना लोके तस्या रूढं स्थापनामङ्गलत्वमिति शेषः॥ इति गाथार्थः॥२७॥ अथ द्रव्यलक्षणमाह दवए दुयए दोरवयवो विगारो गुणाण संदावो। दव्वं भव्वं भावस्स भूअभावं च जं जोग्गं // 28 // (27) जह मङ्गलमिह नामं जीवाऽजीवोभयाण देसीओ। रूढं जलणाइणं ठवणाए सोत्थिआईणं // [(गाथा-अर्थ) जैसे-जीवरूप और अजीव रूप, एवं जीवाजीवोभयरूप अग्नि आदि पदार्थों में, तथा स्वस्तिक आदि (आकार-विशेष) में देशी भाषा (लौकिक बोलचाल) में 'स्थापना' के रूप में 'मङ्गल' शब्द रूढ़ (प्रचलित या व्यवहृत) होता है।] व्याख्याः- 'यथा' शब्द उदाहरण की प्रस्तुति हेतु प्रयुक्त हुआ है। (प्रश्न-) वे कौन से स्थल (उदाहरण) हैं जहां 'स्थापना' है? इस प्रश्न के समाधान-हेतु कहा- जीव और अजीव -इन दोनों प्रकार के अग्नि आदि पदार्थों का देशी भाषा (बोलचाल) में 'मङ्गल' नाम रूढ़ है। उनमें (सचेतन) जीव रूप अग्नि के लिए 'मङ्गल' यह नाम रूढ़ है। सिन्धु प्रदेश में अजीव (अचेतन) रूप ‘दवरक-वलनक' (रज्जुमय तोरण?) के लिए भी 'मङ्गल' नाम रूढ़ है। लाट देश में (आम्रपत्रों की बनी) बन्दनवार (वन्दनमाला) का भी 'मङ्गल' नाम रूढ़ है, इस (वन्दनमाला) में रज्जु (डोरी) तो अचेतन है और आम्रपत्र चेतन हैं, अतः इसे 'जीव-अजीव-उभयरूप' मानना चाहिए। (उपर्युक्त तीनों उदाहरण नाममङ्गल के हैं, किन्तु) 'स्वस्तिक' आदि की (मङ्गल-रूप में) स्थापना लोक में की जाती है, अतः इसका भी स्थापना-मङ्गल होना रूढ़ है- यह विशेष ज्ञातव्य है | यह गाथा का अर्थ पूर्ण हुआ // 27 // (द्रव्य निक्षेप) अब, 'द्रव्य' का लक्षण कह रहे हैं (28) दवए दुयए दोरवयवो विगारो गुणाण संदावो। दव्वं भव्वं भावस्स भूअभावं च जं जोग्गं // 54 -------- विशेषावश्यक भाष्य ----------
SR No.004270
Book TitleVisheshavashyak Bhashya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Damodar Shastri
PublisherMuni Mayaram Samodhi Prakashan
Publication Year2009
Total Pages520
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size11 MB
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