SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 101
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तेणं चिय सामाइयसुत्ताणुगमाइओ नमोक्कारं / , वक्खाणेउं गुरवो वयंति सामाइयसुयत्थं // 11 // [संस्कृतकापा:- तेनैव सामायिकसूत्रानुगमादितो नमस्कारम्। व्याख्यातुं गुरवो वदन्ति सामायिकसूत्रार्थम्॥] येनैवोक्तन्यायेन नन्द्यामसौ सर्वश्रुताभ्यन्तरतया ज्ञापितः, तेनैव कारणेन सामायिकसूत्रानुगमस्यादौ नमस्कारं व्याख्याय गुरवो भद्रबाहुस्वामिनो वदन्ति-अर्थव्याख्यानद्वारेण प्रकटयन्ति सामायिकश्रुतार्थम्। यदि हि पृथगसौ श्रुतस्कन्धः स्यात्, तदा "3 दसकालिअस्स तह उत्तरज्झयाऽऽयारे, सूयगडे निजुत्तिं" इत्यादिग्रन्थे आवश्यकस्य नियुक्तिं प्रतिज्ञाय नमस्कारस्य नियुक्तिकरणमसंगतमेव स्यात् ; तस्मात् तत्करणादेव सर्वश्रुताभ्यन्तरताऽस्य प्रतीयते। अतो व्यवस्थितमिदम् - आवश्यकानुयोगप्रतिज्ञाविधानेनैव नमस्कारानुयोगः संगृहीत एव, करिष्यते च नमस्कारनियुक्तिव्याख्यानावसरे भाष्यकारोऽपि तदनुयोगम्; इत्यलं विस्तरेण // इति गाथार्थः॥ तदेवं सप्रसङ्गमभिहितं योगद्वारम् // 11 // (11) तेणं चिय सामाइयसुत्ताणुगमाइओ नमोक्कारं / वक्खाणेउं गुरवो वयंति सामाइय-सुयत्थं || [(गाथा-अर्थः) उक्त कारण से ही नियुक्तिकार आचार्य श्री भद्रबाहु स्वामी ने सामायिक सूत्र के अनुगम (व्याख्यान) के प्रारम्भ में नमस्कार का व्याख्यान करने के अनन्तर (ही), सामायिक सूत्र का अर्थ-निरूपण किया है।] - व्याख्याः- चूंकि नन्दी सूत्र में नमस्कार को समस्त श्रुत के अन्तर्गत होने का संकेत किया गया है, इसी कारण से सामायिक श्रुत के अनुगम (व्याख्यान) के प्रारम्भ में नमस्कार का व्याख्यान करने के अनन्तर गुरु भद्रबाहु स्वामी ने व्याख्यान के माध्यम से सामायिक श्रुत का अर्थ प्रकट किया है। यदि यह (नमस्कार) पृथक् श्रुतस्कन्ध रूप होता तो 'आवश्यकस्य दशवैकालिकस्य तथा उत्तराध्ययन-आचाराङ्गयोः सूत्रकृताङ्गे नियुक्तिम्' इत्यादि कथन में आवश्यक की नियुक्ति करने की प्रतिज्ञा करके भी, उनके द्वारा (पहले) नमस्कार की नियुक्ति करना संगत नहीं होता। इसलिए, चूंकि उनके द्वारा वैसा किया गया है, इसी कारण से ऐसा ज्ञात होता है कि यह (नमस्कार) समस्त श्रुत के अन्तर्गत (ही) है। अतः यह सिद्ध हुआ कि आवश्यक-अनुयोग की प्रतिज्ञा करने से ही नमस्कारसम्बन्धी अनुयोग भी संगृहीत हो गया है। नमस्कार-सम्बन्धी नियुक्ति की व्याख्या करते हुए भाष्यकार भी नमस्कार-सम्बन्धी अनुयोग का भी (आगे) निरूपण करने वाले हैं। बस, इतना ही (कहना यहां) पर्याप्त है। यह गाथा का अर्थ हुआ। इस प्रकार, सप्रसङ्ग योगद्वार का निरूपण कह दिया गया है // 11 // ---------- विशेषावश्यक भाष्य -------- 35 2
SR No.004270
Book TitleVisheshavashyak Bhashya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Damodar Shastri
PublisherMuni Mayaram Samodhi Prakashan
Publication Year2009
Total Pages520
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy