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________________ धम्मोवएससवणे पुत्तलिगातिगस्स कहा-२७ मच्चुकाणे परमत्थं अणच्चा गयाणुगइगा सव्वे आगया समाणा हसणीआ संजाया / तओ लोगुत्तमे धम्मे सद्धम्म सम्मं जाणिऊण पयट्टिअव्वं, न गयाणुगइयत्तणेण / उवएसो गद्दहमचुकाणंमि, पउत्तिं मोहगब्भियं / पासित्ता 'सुपरिक्खित्ता, कजं किमवि साहए' / / 2 / / गयाणुगइगोवरि मयणमञ्चकाणस्स छव्वीसइमी कहा समत्ता / / 26 / / -सूरीसरमुहाओ 27 सत्तावीसइमी धम्मोवएससवणे पुत्तलिगातिगस्स कहा - - - - सद्धम्मस्सवणे जोग्गा, सोयरा कहिया तिहा। पुत्तलीतितयस्सेह, दिट्ठतो पण्णविजइ / / 27 / / भोयनरिंदसहाए एगया को वि वइएसिओ समागओ / तया तीए सहाए कालीदासाइणो अणेगे विउसा संति / सो वेएसिओ नरिंदं पणमिअ कहेइ-“हे भोयनरिंद ! अणेगविउसवरालंकियं तुव सहं नच्चा पुत्तलिगातिगमुलंकणटुं तुम्ह समीवे हं आगओ म्हि" एवं कहिऊण सो समुच्च-वण्ण-रूवं पुत्तलिगातयं रण्णो करे अप्पिऊण कहेइ–“जइ सिरिमंताणं विउसवरा एआसिं उइअं मुलं करिस्संति, तया अज्ज जाव अन्ननरवरसहासु जएण मए लद्धा जे विजयंकंकिआ लक्खचंदगा ते दायव्वा, अन्नह अहं विजयंकचिन्हिअसुवण्णचंदगमेगं तुम्हाओ गिहिस्सं” / रण्णा ताओ पुत्तलीओ मुल्लकरणत्थं विउसाणमप्पिआओ / को वि विउसो कहेइ-“पुत्तलिगागयसुवण्णस्स परिक्खं णिहसेण हे मणिगारा ! तुम्हे कुणेह, तुलाए वि आरोविऊण मुलं अंकेह" / तया सो वइएसिओ ईसिं हसिऊण कहेइ–“एरिसप्पयारेण मुल्लनिरूवगा जयंमि बहवो संति, अस्स सच्चं मुलं जं सिया, तं णाउं भोयनरिंदसभाए समागओ म्हि" एवं सोच्चा पंडिआ पुत्तलिगाओ करे गहिऊणं सम्मं निरूविंति, परंतु पुत्तलिगातिगस्स रहस्सं णाउं न तीरंति / तया कुद्धो नरिंदो वएइ-“एयाइ महईए परिसाए किमु कोवि एयासिं मुलं काउं न समत्थो ?, धिद्धि तुम्हाणं" / तया कालीदासो कहेइ-'दिणत्तएणावस्सं मुलं काहामि' त्ति कहिऊण सो पुत्तलिगाओ गहिऊण घरंमि गओ / वारंवारं ताओ दट्ठण विआरेइ / सुहुमदिट्ठीए ताओ निरिक्खेइ / तया ताणं पुत्तलीणं कण्णेसु छिद्दाई 1. निकषेण / /
SR No.004268
Book TitlePaiavinnankaha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKastursuri, Somchandrasuri
PublisherRander Road Jain Sangh
Publication Year2005
Total Pages224
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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