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________________ छट्ठी अवियारिआएसे नरिंदस्स कहा ---------- - - - - - - - - - - अवियारिय-आएओ, सप्पाणंमि पडेज वि / साएसं कुंभगारं च, मुंचित्था निवई जहा / / 1 / / कत्थ वि नयरे एगेण नरिंदेण नियनयरे आएसो दिण्णो–“गाममज्झे एगो देवालओ अस्थि / पुरीए माहणा वा वइस्सा वा खत्तिया वा सुद्दा य वा नयरवासिणो जे लोगा संति तेहिं देवालए पविसिअ देवं वंदित्ता गंतव्वं, अन्नहा तस्स वहो भविस्सइ” / एगो कुंभयारो तमाएसं अजाणिऊण गद्दहमारुहिय हत्थे लगुडं गिण्हित्ता महारायव्व गच्छइ / तेण देवालए सो देवो न वंदिओ / तओ रुट्ठा सुहडा तं गिण्हिऊण नरिंदग्गओ नएइरे / जमा
SR No.004268
Book TitlePaiavinnankaha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKastursuri, Somchandrasuri
PublisherRander Road Jain Sangh
Publication Year2005
Total Pages224
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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