SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 53
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 24 पाइअविनाणकहा-१ माइपिऊण विओगो / सबंधवो नरिंदो मायापिअरमिलणाय अइव उक्कंठिओ जाओ / पहाणसेणावई कहित्ता हत्थि-तुरंग-रहपाइक्काइपबलसेणाए जुत्तो विजयजत्ताए निग्गओ / मग्गंमि साम-दाम-भेय-विग्गहाईहिं रायनीईहिं नरिंदे वसीकुणंतो कमेण ठक्कुरगामे आगओ, जत्थ गामे नियमायपियरा संति / गामाओ बाहिं खंधावारो ठविओ / ठक्कुरोवि महारायस्स आगमणं सोच्चा भयभीओ नयराओ आगंतूण सबंधुनरिंदपाए नमेइ / पाहुडं दाऊण तस्स आणं अंगीकूणेइ / Joooo कहाविणोए जिणदत्तेण रण्णा पुटुं-'तव नयरे को वि वणिओ अत्थि न वा ? ' / तेण उत्तं-“मम नयरे जिणदासो नाम वणिगो अत्थि, सो कइवयवासाओ पुव्वं एत्थ आगच्च कयविक्कयं कुणंतो चिट्ठइ" / नरिंदो वि तस्स सेट्ठिस्स आहवणत्थं जणं पेसेइ / सो जिणदासो आगच्च सबंधुं नरिंदं पणमइ / नरिंदो वि तं पुच्छइ-'हे सेट्ठि ! तुं अम्हे किं परिजाणासि ?' / सेट्ठी आह-'अणेगनरिंदवंदियपायकमलं भवंतं महारायं को न जाणइ ?' /
SR No.004268
Book TitlePaiavinnankaha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKastursuri, Somchandrasuri
PublisherRander Road Jain Sangh
Publication Year2005
Total Pages224
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy