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________________ 138 पाइअविनाणकहा-१ को वि वणिओ नत्थि ? / एवं सोच्चा एगो पुरिसो नरिंदं कहेइ-महाराय ! 'अप्पा नियं पावं, जणणी य पुत्तस्स पियरं जाणेइ' एवं एत्थ सव्वे वि वणिअवरा अणीइप्पिया चिअ नजंति, परंतु जह ‘सएसु जायए सूरो, सहस्सेसु य पंडिओ, वत्ता दससहस्सेसु' दाया लक्खेसु जायए तह कोडीसु वि नायसंपण्णविहवो कया कत्थ वि लब्भइ' अओ इमंमि नयरे जिणदत्तो नाम सेट्ठिवरो नायमग्गेण एव ववहरेइ / M WWW www 1 एवं सोच्चा भोयनरिंदो तं सेट्ठिवरं वाहणपेसणेण बोल्लावेइ / सो सेट्ठी रायदव्वं असुद्धमेव चिंतित्ता पाएहिं चिय नरिंदसहाए आगच्छेइ, निवं च पणमिऊण उवविट्ठो / नरिंदो पुच्छेइ-'तुम्हाणं समीवे नायसंपण्णदव्वं किमत्थि ' ? / जिणदत्तो ह त्ति भणेइ / तया नरिंदो खायमुहत्तटुं पंचविहरयणाइं मग्गेइ / जिणदत्तो कहेइनायदव्वं पावकज्जे अहं न देमि / एवं सोच्चा कुद्धो नरिंदो वएइ-'जइ न दाहिसि ता बलाओ वि गिहिस्सामि' / सेट्ठी कहेइ-'मम घरसव्वस्सं तुम्हकेरं, जहेच्छं तुम्हे गिण्हह' / तया जोइसिआ कहिंति-'हे नरवर ! एवं बलाओ
SR No.004268
Book TitlePaiavinnankaha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKastursuri, Somchandrasuri
PublisherRander Road Jain Sangh
Publication Year2005
Total Pages224
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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