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________________ पाइअविनाणकहा-१ नरिंदपुच्छिओ मुणिवरो सहाजणाणं पडिबोहत्थं तीसे सवलीए वुत्तं कहेइ-" पुरा सिरिपुरनयरे धण्णसेट्ठी आसि / तस्स रूववई अवि सीलभट्ठा सुंदरी भज्जा अस्थि / पई वंचिऊण जारपुरिसघरं गच्छइ / एगया जारो तीए भत्तारभीओ कहेइ–'तुमए मम गेहे कया वि न आगंतव्वं, जओ तुम्ह पइत्तो बीहेमि ' / सा कहेइ-'हे पिय ! तुमं निञ्चितो भवेसु, हं तह काहं, जह तुम्ह भयं न होही' / तओ सा जारपुरिसरत्ता पइमारणत्थं विसमिस्सिअपयपत्तं भरिऊण अववरए एगंते ठवेइ / भोयणावसरे तीए भत्ता जया भोयणत्थमुवविठ्ठो तया सा खीरमाणेउं अब्भंतरं गया समाणा तत्थ उग्गविसविसहरेण दट्ठा संती उच्चयरं पुक्कारं काऊण पडिऊण पंचत्तं पत्ता / ___धण्णसेट्ठी तए पडणसई सोच्चा-'किं जायं ' ति सहसा उत्थाय तत्थ गओ / तं मयं दट्ठणं तीए कुचरियं अजाणमाणो बहुं विलवेइ / तीसे मरणकिच्चं काऊण संसारत्तो विरज्जमाणो सत्तखेत्ताईसु धणं दाऊण पव्वइओ, कमेण य इक्कारसंगधरो संजाओ /
SR No.004268
Book TitlePaiavinnankaha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKastursuri, Somchandrasuri
PublisherRander Road Jain Sangh
Publication Year2005
Total Pages224
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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