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________________ व्यन्तर निकायके 16 इन्द्रोंके नामका यंत्र ] गाथा 36-37 [ 97 विशेषार्थ—पहले भवनपतिके दसों निकायोंके दक्षिण-उत्तरभेदसे जिस तरह बीस इन्द्र कहे गये हैं उसी तरह व्यन्तरोंके आठों निकायोंके दक्षिणोत्तरभेदसे सोलह इन्द्र कौन-कौनसे हैं, यह बताते हैं। __पहले पिशाचनिकायकी दक्षिणदिशाके इन्द्रका नाम काल और उत्तरदिशामें महाकाल, दूसरे भूतनिकायकी दक्षिणदिशामें सुरुप और उत्तरदिशामें प्रतिरूप, तीसरे यक्षनिकायकी दक्षिणदिशामें पूर्णभद्र और उत्तरदिशामें माणिभद्र, चौथे राक्षसनिकायकी दक्षिणदिशामें भीम और उत्तरदिशामें महाभीम, पाँचवें किन्नरनिकायकी दक्षिणदिशामें किन्नर और उत्तरदिशामें किंपुरुष, छठे किंपुरुषनिकायकी दक्षिणदिशामें सत्पुरुष और उत्तरदिशामें महापुरुष, सातवें महोरगनिकायकी दक्षिणदिशामें अतिकाय और उत्तरदिशामें महाकाय और आठवें गान्धर्वनिकायकी दक्षिणदिशामें १२'गीतरति और उत्तरदिशामें गीतयश है / इस तरह आठों निकायोंके दक्षिणोत्तरभेदसे सोलह इन्द्र बताये। ये सोलहों इन्द्र महापराक्रमी, संपूर्ण सुखी, अतिऋद्धिशाली, संपूर्णोत्साही और अपूर्व सामर्थ्यादिसे युक्त हैं। [36-37] * व्यन्तर निकायके 16 इन्द्रोंके नामका यन्त्र। निकाय 1. पिशाचनिकाय 2. भूतनिकाय 3. यक्षनिकाय 4. राक्षसनिकाय 5. किन्नरनिकाय 6. किंपुरुषनिकाय 7. महोरगनिकाय 8. गान्धर्वनिकाय दक्षिणेन्द्र 1. कालेन्द्र 3. स्वरूपेन्द्र 5. पूर्णभद्रेन्द्र 7. भीमेन्द्र 9. किन्नरेन्द्र 11. सत्पुरुषेन्द्र | 13. अतिकायेन्द्र / 15. गीतरतीन्द्र उत्तरेन्द्र 2. महाकालेन्द्र 4. प्रतिरूपेन्द्र 6. माणिभद्रेन्द्र 8. महाभीमेन्द्र 10. किंपुरुषेन्द्र 12. महापुरुषेन्द्र | 14. महाकायेन्द्र 16. गीतयशेन्द्र अवतरण-इन आठों निकायोंके देवोंकी ध्वजाके चिह्न कहते हैं; . 121. सरस्वतीदेवी इस इन्द्रकी अग्रमहिषी है ऐसा क्षेत्रसमास तथा भगवतीजीकी टीकामें कहा है / - [से० प्र० 236 ] बृ. सं. 13
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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