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________________ लोकपालोंके आयुष्यस्थिति ] गाथा 18 [77 * नामसे अंकित ऐसे अवतंसक ( विमानों में श्रेष्ठ) नामके विमान रहे हैं। वे पंक्तिगत नहीं अपितु पुष्पावकीर्णकी तरह है और वे मध्यके इन्द्रक विमानसे असंख्य योजन दूर और पंक्तिगत विमानोंके प्रारम्भसे पूर्व में स्थित हैं। जैसे कि-सौधर्म देवलोकके तेरह प्रतर, उस तेरहवें प्रतरके दक्षिण विभागमें सौधर्मावतंसक नामका विमान है और उस विमानमें रहनेवाला इन्द्र-सौधर्म है। वैसे ईशान देवलोकके अन्तिम प्रतरके उत्तर विभागमें ईशानावतंसक नामका विमान है, उसमें रहनेवाला इन्द्र ईशानेन्द्र कहलाता है / इसके अनुसार सर्वत्र आगे आगे समझना, तथापि नौवें तथा दसवें देवलोक-(आनत, प्राणत )का इन्द्र एक है / यह इन्द्र प्राणत देवलोकके चौथे प्रतरमें प्राणतावतंसक नामका विमान है उसमें रहता है। वैसे ही आरण और अच्युतके लिये जाने / इस तरह वे सर्व अवतंसक विमानों में इन्द्रोंके निवास हैं। और उन अवतंसक विमानों की चारों दिशाओं में सोम आदि लोकपालोंके विमान स्थित हैं, ऐसा सर्वत्र समझ लें / [17] (प्र० गा० सं० 1) [प्रक्षिप्त गाथा संख्या 2] अवतरण-इन्द्र और लोकपालके निवासोंका स्थान बताकर अब सौधर्मेन्द्रके चार लोकपालोंका उत्कृष्टायुष्य कहते हैं सोम-जमाणं सतिभाग, पलिय वरुणस्स दुन्निदेस्णा / / वेसमणे दो पलिया, एस ठिई लोग पालाणं // 18 // [प्रक्षे० गा० सं० 2] गाथार्थ-सोम तथा यम नामके लोकपालकी आयुष्य-स्थिति तीसरे भाग सहिन एक पल्योपम (1) प्रमाण है। वरुण लोकपालकी स्थिति कुछ न्यून दो पल्योपम और वैश्रमण लोकपालकी दो पल्योपमकी है। इस प्रकार लोकपाल देवोंकी स्थिति जानें // 18 // _ विशेषार्थ-स्वस्व देवलोकके इन्द्र अपने अपने देवलोकके अन्तिम प्रतरमें देवलोकने नामसे अंकित अवतंसक विमानों में रहते हैं और उन विमानोंकी चारों दिशाओं में इन्द्रोंके रक्षणार्थ लोकपाल होते हैं। उनमें पहले सौधर्म-देवलोकके अन्तिम प्रतरमें रहे, सौधर्मावतंसक नामके विमानकी पूर्व दिशाका लोकपाल सोम है और दक्षिण दिशाका लोकपाल यम है, उन दोनोंका उत्कृष्टआयुष्य एक पल्योपम और एक पल्योपमके तीसरे भाग सहित अर्थात् 1 पल्योपमका होता है। पश्चिम दिशाका लोकपाल वरुण है, उसका उत्कृष्ट-आयुष्य देशे-उना दो पल्योपमका
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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