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________________ * एक मुहूर्तमें कितने जन्म हुए? . .349 . * जब असंख्य समय [चतुर्थ जघन्य युक्त असंख्याताके जितना ] एक साथ मिलते हैं तब एक आवलिका बनती है और ऐसी 16777216 आवलिकाएँ पसार होती है तब एक मुहूर्त होता है। यह मुहूर्त वर्तमानकालमें प्रचलित अंग्रेजी कालमानके साथ नापनेसे 48 मिनटका बनता है। दूसरे अर्थमें देखें तो 24 मिनटकी एक घडी, ऐसी दो घड़ी अथवा 48 मिनटका एक मुहूर्त बनता है। प्रिय वाचकगण ! जरा कल्पना तो कीजिए कि एक मिनटकी आवलिकाएँ कितनी हुई ! तो करीबन साडेतीनलाख / तो कहिए कि कितने सूक्ष्म कालमान सर्वज्ञकथित जैन दर्शनमें दिखाए गए हैं। तब समय मान कितना सूक्ष्म होगा इसे कल्पनासे सोच लें। ____ आजके आविष्कारक (वैज्ञानिक ) एटम तथा स्पुतनिक (कृत्रिम-मानव सर्जित उपग्रह) रॉकेटोंकी आश्चर्यजनक खोज भले ही करें, लेकिन तीर्थकर सर्वज्ञके चैतन्यविज्ञानको तथा उनकी अंतिम सूक्ष्मताओंको वे कदापि लाँघ नहीं सकेंगे, यह एक निर्विवाद हकीक़त है। तीर्थकर सर्वज्ञ तो अणुको भी देख-जान सकते थे। आजके वैज्ञानिक उसी अणुशक्तिसे एक सेकण्डके अरबोंवें भागको मी नापनेमें जो समर्थ बने हैं और अभी तो आगे बढ़ते ही जाते हैं, फिर भी वे असर्वज्ञ छद्मस्थ ज्ञानद्रष्टि ‘परमाणु'को खोज नहीं सकेंगे। अरे ! 'समय'को मी नाप सकेंगे नहीं। क्योंकि 'परमाणु' ही सबसे अंतिम पदार्थमान है तो 'समय' सबसे अंतिम कालमान है। ( एक सेकण्डके असंख्यातवें भाग पर समय मान आता है ) इन दोनों मानों-प्रमाणोंको सर्वज्ञके विना देखनेमें कोई समर्थ नहीं है, और इस मानको जाननेके लिए यांत्रिकशक्तिका सहकार कमी भी सफल हो सकेगा ही नहीं। . पदार्थ तथा कालकी सूक्ष्मता और स्थूलताके अंतिम रहस्यको भी आजका विज्ञान भले ही नहीं लाँघ सकता, फिर भी आजका भौतिक विज्ञान ही सर्वज्ञकथित सत्योंकी सहायताके लिए एकदम ही साथ साथ आगे बढ़ रहा है। शास्त्रोंकी कुछ बातोंको आजका बुद्धिमान वर्ग अथवा अल्पश्रद्धालु या अश्रद्धालु वर्ग हँसकर जो टाल देता था तथा उसका मजाक उड़ाता था और अशक्य कहकर असत् मानता था उन्हीं अनेक शास्त्रीय कथनोंको विज्ञान आज तादृश कर रहा है। ( मैं इसकी सूची तथा तुलना आमुखप्रस्तावनामें करना चाहता हूँ।) 673. संख्य, असंख्य तथा अनंतकाल किसे कहते हैं ? इसका विस्तृत स्वरूप जाननेके लिये मेरी लिखी हुई 'गृहत्संग्रहणी सूत्रके पांच परिशिष्टों' नामक पुस्तिका पदिए /
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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