SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 731
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ * उवओग-उपयोगद्वार * और अंतमें दुर्गति तथा बंधनके दुःख आपके सामने ही उपस्थित होकर आपका स्वागत करेंगे! ____ इसलिए हे मेरे प्यारे वाचक ! आपको कौनसा मार्ग अधिक पसंद है ! इसे आप स्वयं ही सोच लीजिए ! और फिर उसी मार्गपर आगे प्रयाण करनेका पुरुषार्थ कीजिए / सुज्ञेषु किं बहुना ! 15. उवओग [उपयोग]-वस्तु स्वरूपको जाननेमें जो उपयोगी बनता है, अथवा जिसकी सहायतासे पदार्थका स्वरूप समझमें आता है, अथवा पदार्थके ज्ञानमें आत्मा जिससे जुड़ जाती है वह / ये सभी 'उपयोग 'की ही परिभाषाएँ हैं। साथ ही ज्ञान, संवेदन, प्रत्यय आदि शब्द ज्ञानके पर्याय हैं। यह उपयोग जीवको ही लक्षण है। और इसके कारण ही जीव द्रव्यमें ही होता है। जीवको छोड़कर अन्य किसी भी द्रव्यमें वह नहीं होता। यह जीव-चेतन द्रव्य तो जड द्रव्यसे सर्वथा भिन्न द्रव्य है जो जीवके उपयोग रूप असाधारण लक्षणोंसे सिद्ध होता है। .इस उपयोगके दो प्रकार हैं। 1. साकारोपयोग और 2. अनाकारोपयोग / वस्तुके आकार आदि विशेष स्वरूप पर जब उपयोग विद्यमान होता है तब इसी उपयोगके साथ ज्ञान शब्द संलग्न करनेसे उसे 'ज्ञानोपयोग' अथवा 'साकारोपयोग' कहा जाता है। और जब वह वस्तुके निराकार स्थूल-सामान्य धर्मकी ओर हो तब वह 'दर्शन' शब्दसे युक्त 'दर्शनोपयोग' अथवा 'निराकारोपयोग' कहा जाता है। दूसरे शब्दोंमें कहे तो ज्ञान साकारोपयोग स्वरूप है और दर्शन निराकारोपयोग स्वरूप है। .... इससे साकारोपयोगरूप ज्ञानके आठ और निराकारोपयोग रूप दर्शनके चार प्रकार हैं / ज्ञानके आठ भेदोंमें मति, श्रुत, अवधि, मनःपर्यव और केवल-ये पाँच प्रकार है, और तीन 1. मति अज्ञान, 2. श्रुत अज्ञान और 3. ( अवधिके स्थानपर अवधि अज्ञान बोलते नहीं है लेकिन) विभंगज्ञान-अज्ञानमें आते हैं। इस प्रकार ये आठ प्रकाहैं। इन्हीं भेदोंके अंतमें 'उपयोग' शब्द लगानेसे ज्ञानोपयोगके आठ प्रकार समझमें आ 649. देखिए- उपयोगो लक्षणम् ' [त. अ. 2. ] नाणं च दसणं चेव, चरितं च तवो तहा ' वीरियं उवओगोय, एवं जीअस्स लक्खणं // [ नवतत्त्व मूल] 650. अनेक पदार्थोमेंसे अलग करनेवाले किसी एक हेतुको ‘लक्षण' कहते हैं / 651. आकार शब्दसे यहाँ सिर्फ लम्बाई, चौडाई आदि अभिप्रेत नहीं है, लेकिन जो पदार्थ जिस प्रकारका होता है वह उसी प्रकारसे अपने ज्ञानमें भासमान होता है ऐसा समझें /
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy