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________________ * शानद्वार-मनःपर्यवज्ञान * * 325 . ही भावमन है अथवा व्यक्ति द्वारा किया गया विचार ही भावमन है। अब इसे अधिक स्पष्टता तथा सरलतासे समझ लें / यों तो विचार करनेवाला मुख्यतः जीव अथवा आत्मा है। यह आत्मा मन नामके पदार्थकी मददसे कोई भी बाबतका विचार करनेमें शक्तिमान होती है। विचार आनेके साथ ही उसी विचारके अनुरूप चर्म चक्षुसे अदृश्य 'मनोवर्गणा' नामकी जातिके (एक प्रकारके अणुके बने हुए गुच्छे) विश्वव्यापी पुद्गलोंमेंसे स्वदेहावगाह क्षेत्रमेंसे जिस प्रकार लोहचुंबक लोहेको खींचता है उसी प्रकार जीव पुद्गलोंको खींचता है अथवा ग्रहण करता है / इतना ही नहीं, किए गए विचारके अनुरूप उन्हें प्रस्तुत भी करता है। मतलब यह कि उन्हीं विचारके अनुरूप अक्षर-शब्दोंसे लिख सके वैसे अक्षर अथवा शब्दाकारके रूपमें वे पुद्गल क्रमबद्ध सज जाते हैं / इस प्रकार तैयार हुए पुद्गलके आलंबन-सहारेसे ही जीव योग्य रूपसे यथोचित विचार कर सकता है। एक विचार पूर्ण हुआ कि इस विचारके लिए ग्रहण करके संस्कारित किए गए पुद्गलोंको वह बादमें छोड देता है। और ये पुद्गल पुनः वातावरणमें ( वायुमंडल ) मिल जाते हैं। दूसरा विचार करना-बनाना हो तब फिरसे इसी प्रकार पुद्गल ग्रहण परिणमनादिकी क्रिया करनी पड़ती है और आत्मा प्रस्तुत मनके द्वारा विचार करने समर्थ बनती है। - पुद्गलग्रहण, परिणमन, आलंबन, विसर्जन इत्यादि प्रक्रिया जन्मजातसे प्राप्त मनःपर्याप्ति ( काययोगसह )के बलसे होती है / .. अब पुद्गलोंसे लिखित अक्षरोंकी तरह कोई तथाप्रकारके आकारोंको देखकर जो भाव समझमें आता है उसे भावमन कहते हैं। कोई भी मनःपर्यवज्ञानी इस मनन व्यापाररूप भावमन को प्रत्यक्ष देख सकता नहीं है। इसका अर्थ इतना ही कि भावमन तो ज्ञानरूप है, जो ज्ञान अमूर्त-अरूपी है जिसका साक्षात्कार छद्मस्थको भी न होकर सिर्फ केवलीको ही होता है। - इस प्रकार अब द्रव्यमन तथा भावमनकी परिभाषा यहाँ पूर्ण हुई। अब जिस ज्ञानकी बात चलती है उस 'मनःपर्यवज्ञान'का कार्य अथवा फल क्या है ? उसे देखते हैं। 639. उस वर्गणाके पुद्गल 14 राजलोकमें सर्वत्र होते हैं / लेकिन विचार करते समय मन जिन पुद्गलोंको खींचता है उन्हें तो स्वदेहावगाढ वर्गणासे ही ग्रहण करता है /
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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