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________________ * 306 . .श्री बृहत्संग्रहणीरत्न-हिन्दी भाषांतर * यह घट किस ऋतुमें उपयोगी हो सकता है ! अथवा किस ऋतुमें किस समय वना होगा ! यह काल सम्बन्धी विचार-चिंतन हुआ / और अब भावसे-आकारसे घट सम्बन्धी सोचें कि-घटका आकार कैसा है, रंग कैसा है, लम्बा है, छोटा है, गोल है कि लम्बगोल है ? इत्यादि चिंतन 'भाव' चिंतन हुआ / उपर्युक्त सभी (विशेषों) विशेषणोंको जानना ही वास्तवमें 'ज्ञान' कहलाता है। 'दर्शन'को स्पष्टार्थ समझानेके लिए ही यहाँ पर ज्ञानको समझाया है / ___अब इस दर्शनके भी चार भेद हैं। 1. चक्षु, 2. अचक्षु 3. अवधि, 4. केवल / 1. इनमें चक्षुदर्शन अर्थात् नेत्रवाले प्राणियोंको अपने चक्षु ( आँख) से पदार्थका जो निराकार अथवा सामान्यदर्शन होता है वह / 2. चक्षुके सिवाकी शेष चार इन्द्रियाँ और मन द्वारा वस्तुका जो सामान्य बोध होता है, वह है अचक्षुदर्शन / 3. इन्द्रियों तथा मनकी सहायताके बिना रुपी द्रव्योंका (चीजोंका) जो सामान्यदर्शन होता है, वह है अवधिदर्शन। 4. और तीनों कालके पदार्थीको सामान्य भावसे सर्व प्रकारोंसे देखना केवलदर्शन कहलाता है। यहाँ एक बात खास ध्यानमें रखें कि छद्मस्थोंको प्रथम दर्शनोत्पत्ति और बादमें ज्ञानोत्पत्ति होती है, लेकिन केवलज्ञान प्रकट होनेके साथ ही सबसे पहले समयमें ही ज्ञानापयोग प्रकट होता है और बादमें दर्शनोपयोग होता है / इस प्रकार वह अनंतकाल तक उसी क्रमसे ही टिके रहते हैं। इस लिए वहाँ केवल एक ही संख्या पर ज्ञान और दो की संख्या पर दर्शन समझ लेना चाहिए। 13. नाण-(ज्ञान) अनेक आगमों तथा उनके टीकादि अंगों और कर्मग्रन्थादिक तथाविध प्रकरणों में विभिन्न प्रकारोंसे 'ज्ञान' शब्दकी परिभाषाएँ तथा उसकी व्युत्पत्तियाँ दर्शायी है। लेकिन इन सबसे अगर सरल तथा शीघ्रग्राही परिभाषा पेश करनी हो तो यह है कि "जिससे पदार्थका ज्ञान अथवा बोध होता है उसका नाम है ज्ञान / 603. इसलिए ही भगवतीजी, नमुत्थुणं आदि में सव्वन्नूणं-सव्वदरिसीणं ऐसा क्रम देखा जाता है। 604. ज्ञायते परिच्छद्यते वस्त्वनेनेति /
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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