SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 69
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वैमानिक देवकी उत्कृष्ट आयुष्यस्थिति] गाथा 14 [69 दुसु तेरस दुसु बारस, छ प्पण चउ चउ दुगे दुगे य चउ गेविज्ज-णुत्तरे दस, बिसट्ठि पयरा उवरि लोए // 14 // गाथार्थ-सौधर्म तथा ईशान देवलोकमें तेरह प्रतर हैं। तत्पश्चात्के तीसरे और चौथे-इन दो देवलोकों में बारह प्रतर हैं। पाँचवें देवलोकमें छह प्रतर, छठे में पांच प्रतर, सातवेंमें चार प्रतर, आठवेंमें चार प्रतर, नवम तथा दशम देवलोकमें चार और ग्यारह तथा बारहवें देवलोकमें भी चार प्रतर हैं / तत्पश्चात् नौ प्रैवेयकके नौ और अनुत्तर विमानका एक मिलकर कुल दस प्रतर हैं / इस तरह ऊर्ध्वलोकके देवलोकमें बयासठ प्रतर हैं // 14 // विशेषार्थ-प्रतर अर्थात् क्या ? तो मनुष्यलोकमें प्रवर्तमान घरोंमें १०५सौ-सौसे अधिक मंजिलें होती हैं। इन मंजिलों की गिनती करानेवाली अथवा विभाग करनेवाली जो तलप्रदेश-वस्तु है वह देवलोकाश्रयी शास्त्रीय परिभाषामें 'प्रतर' शब्दसे संबोधित होती है। परन्तु विशेष यह है कि-मनुष्यलोककी मंजिलै-लकडी आदिकी सामग्रीके आलम्बनसे स्थित हैं, जब कि देवलोकमें स्थित प्रतर-स्तर स्वाभाविक रूपसे बिना आलम्बनके ही स्थित हैं। ___परन्तु इतना विशेष ज्ञातव्य है कि-देवलोकके प्रतर अलग और विमान भी अलग ( अर्थात् पीढे पर विमान अलग) इस तरह दो अलग-अलग वस्तुएँ नहीं हैं किन्तु समग्र कल्पना विमानके नीचेसे समान सतह पर होनेसे उस विमानके अधःस्तन तलभागसे ही (विमानके कारण ही) विभाग पड़नेसे पाथडे ( पीढे ) समझना / ऐसे पाट-पीढे या स्तर कुछ कुछ दूरी (आंतर-आंतर )से तेरहकी संख्यामें स्थित हैं। उनमें प्रथम सौधर्म तथा ईशान देवलोकके मिलाकर तेरह प्रतर ( तलप्रदेश ) वलयाकारमें हैं, इसलिए दोनों देवलोक एक समान सतहमें बिना व्याघातके जुड़े हुए हैं और इसलिए वे संपूर्ण वलयाकार बनते हैं। यह देवलोक पूर्णेन्दुके. आकारका होनेसे कहे गये तेरह प्रतर वलयाकार हैं और यह भी तभी लिये जा सकते हैं कि जब दोनों देवलोकके प्रतर साथमें गिने जाएँ, इसलिए यह देवलोक महाविदेहक्षेत्रकी ऊर्ध्वदिशामें सीधी सतहमें होनेसे उस क्षेत्रकी अपेक्षासे पूर्व महाविदेहकी तरफका और पश्चिम महाविदेहकी तरफका और मध्यभागसे आधा-आधा विभाग करें तो एक मेरुसे दक्षिण दिशाका और एक मेरुसे उत्तरदिशाका इस तरह दो विभाग होते हैं, उनमें दक्षिण 105. भारतवर्षमें बम्बई आदि बड़े शहरोंमें सात, आठ और उनसे अधिक मंजिलोंके मकान हैं / विदेशमें बड़े बड़े देशोंकी राजधानियों-लंडन, पेरिस, मोस्को, बर्लिन, वॉशिंगटन आदि में तो 50, 75, 80, 100, 125, मंजिलोंकी गगनस्पर्शी इमारतें हैं / न्यूयार्क शहरमें न्यू एम्पायर स्टेट नामका बिल्डिंग 125 मंजिलकी आज विद्यमान है /
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy