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________________ * 282 . * श्री बृहत्संग्रहणीरत्न-हिन्दी भाषांतर * पहला अर्थ है 'अस्थिनिचय' माने हड्डियोंका संचय अर्थात् अमुक रीतसे एकत्र होना अथवा रचनाविशेष वह / और दूसरा अर्थ है शक्तिविशेष अर्थात् शरीरके पुद्गलोंको जो मजबूत बनाता है वह / इस संहननके छः प्रकार हैं। इसके वर्णनके लिए देखिए गाथा 159-60 / 4. संज्ञा-आहारादि संज्ञाओंके वर्णनके लिए देखिए गाथा 341-42 का विवेचन / 5. संस्थान संस्थान अर्थात् शरीरका अकारविशेष अर्थात् पुद्गलकी अमुक प्रकारकी रचनाविशेष वह / ये संस्थान समचतुरस्रादि छः प्रकारके होते हैं जिनका वर्णन गाथा 163-65 के विवेचन प्रसंगमें कहा गया है। संस्थानके विषयमें जानने योग्य जो हकीकत इससे पूर्व नहीं बतायी है उसे यहाँ जानकारीके लिए दी जाती है / संस्थान अर्थात् आकार / ये आकार अनेक प्रकार के विश्वमें प्रवर्तमान हैं / ये आकार जीव, अजीव दोनोंमें होता है / जो शरीरधारी होता है उसे सामान्यतः जीव शब्दसे और अशरीरीको आत्मा शब्दसे पहचाननेका नियम है। आत्माके लिए तो कोई भी संस्थान है ही नहीं, इस लिए उसे अनित्यसंस्थानवाला कहा जाता है / जीवके देहधारी आकारोंके लिए शास्त्रमें, पृथ्वीके शरीरके लिए मसूरकी दाल, पानीके लिए बुलबुला, अग्निके लिए सूई अथवा उसका समूह तथा वायुके लिए धजा कहा है। इसके अतिरिक्त मीतर ही भीतर अनेक चित्रविचित्र आकृतियाँ मी होती हैं। ये आकृतियाँ पुद्गलरूप शरीरकी ही होती हैं। दो इन्द्रियसे लेकर चार इन्द्रियवाले जीवोंके लिए 'हुंडक' संस्थान कहा है जो श्लाघनीय (प्रशंसनीय) और रुचिकर नहीं है / इसमें अनेक आकार मिल आते हैं / पंचेन्द्रिय जीवों में मनुष्य-देव, नारक, तिर्यच, तिर्योंमें-पशु, पक्षी, जलचर, स्थलचर, उरपरिसर्प, भूजपरिसर्प, चार पैरवाले इत्यादिमें भाँतभाँतके रूप, आकार, चित्रविचित्र और अद्भुत लगे वैसे शरीर होते हैं। उन सभीका समाविष्ट पूर्वोक्त समचतुरस्रादि छः संस्थानोंमें किया जाता है / / 586-587. संघयणमठिनिचओ / संहननम्-अस्थिनिचयः शक्तिविशेष इत्यन्ये / [स्था० 6, ठा० 3, उ० 3] दृढीक्रियन्ते शरीरपुद्गला येन तत् / / . . . . 588. सदसलक्षणोपेतप्रतीकसन्निवेशजम् / शुभाशुभाकाररूपं षोढा संस्थानमङ्गिनाम् // [लो. प्र.]
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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