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________________ वैमानिकदेवीओंकी जघन्य-उत्कृष्ट आयुष्यस्थिति ] गाथा 11-12 [ 67 परिणत स्त्रीके सदृश मर्यादाशील समझें तथा अपरिगृहीताको गणिका (वेश्या )के समान स्वेच्छाचारिणी जानें / उन देवियोंकी जघन्य आयुष्यस्थिति कही जाती है सौधर्म देवलोकमें परिगृहीता और अपरिगृहीता देवियोंकी जघन्य आयुष्यस्थिति एक पल्योपमकी है और ईशान देवलोकमें परिगृहीता और अपरिगृहीता देवियोंकी आयुष्यस्थिति एक पल्योपमसे कुछ अधिक समझें / अब उत्कृष्ट आयुष्यस्थिति कही जाती है सौधर्म देवलोकमें परिगृहीता देवियोंकी उत्कृष्ट आयुष्यस्थिति सात पल्योपमकी और अपरिगृहीता देवियोंकी पचास पल्योपमकी होती है। तथा दूसरे ईशान देवलोकमें परिगृहीता देवियोंकी उत्कृष्ट आयुष्यस्थिति नौ पल्योपमकी और अपरिगृहीता देवियोंकी पचपन पल्योपमकी होती है। इससे ऊपरके देवलोकों में देवियोंकी 10 उत्पत्ति नहीं है। विशेषमें भवनपतिसे लेकर व्यन्तर, ज्योतिषी तथा सौधर्म-ईशान निकायोंमें देवोंकी अपेक्षा देवियाँ बत्तीसगुनी, बत्तीस अधिक कही गई हैं / (12) सौधर्म-ईशान देवलोकस्थित परिगृहीता-अपरिगृहीता देवियोंका जघन्य-उत्कृष्ट आयुष्यस्थिति यन्त्र देवलोक नाम | देवीकी जाति | जघन्य आयुष्य | उत्कृष्ट आयुष्य |1 सौधर्म देवलोकमें परिगृहीता | 1 पल्योपम 7 पल्योपम अपरिगृहीता . . |2. ईशान देवलोकमें | * परिगृहीता 1 पल्योपम साधिक 9 अपरिगृहीता | , , 55 पल्योपम मध्यमस्थिति-जघन्योत्कृष्टकी बिचकी यथासंभव सोचें ... " अवतरण-देवियोंके अधिकारमें प्रासंगिक असुरकुमारादि इन्द्रोंकी अग्रमहिषियोंकी संख्या बताते हैं पवित्र रखकर स्व-पतिमें सन्तोष मानकर, कुलाचारकी मर्यादाके अनुसार वर्तन करनेवाली सुशील हो, उसे कुलांगना कहते हैं, उसी तरह देवलोकमें भी वैसे ही रहन-सहनवाली जो देवियाँ होती हैं वे कुलांगना कहलाती हैं / . 103. तीसरे सनत्कुमार देवलोकसे लेकर अच्युत देवलोक तक अपरिगृहीता देवियोंका सम्भोगादिके
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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