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________________ 240. * श्री बृहत्संग्रहणीरत्न-हिन्दी भाषांतर * पांच इन्द्रियाँ (29 भेद) द्रव्येन्द्रिय (19) भावेन्द्रिय (10) निवृत्ति उपकरण लब्धि (5) उपयोग (15) आभ्यन्तर (5) बाह्य (4) आभ्यन्तर (5) बाह्य (5) ___ अपेक्षासे सर्व जीव एकेन्द्रिय तथा पंचेन्द्रिय कैसे ? सर्व संसारी जीवोंके उपयोग-भावेन्द्रिय ( अर्थात् विषयावबोध व्यापार ) एक समय पर एक ही होता है, उस अपेक्षासे * सर्व संसारी जीव एकेन्द्रिय कहलाते / क्योंकि पंचेन्द्रिय जीवोंमें पांचों इन्दियोंका क्षयोपशम होता है, पांचों द्रव्येन्द्रियाँ विद्यमान हों और पांचों इन्दियों के विषय उपस्थित हों फिर भी उपयोग तो एक समय पर एक ही इन्द्रियका प्रवर्तित हो सकता है। परंतु एक समयमें दो इन्द्रियोंका उपयोग कभी नहीं हो सकता। क्योंकि जिस समय पर चक्षु इन्द्रियका उपयोग हो तब शेष चारका उपयोग नहीं ही होता। जिस इन्द्रियके साथ जीवका मन जुड़े वह एक ही इन्द्रिय अपना विषय ग्रहण करनेको प्रवृत्त होती है। आत्माके साथ मन, मनके साथ इन्द्रिय और इन्द्रियके साथ उसका विषय जुड़ता है। उपयोग भावेन्द्रियकी अपेक्षासे सर्व जीवोंको एकेन्दिय रूपमें भी सूचित किये / यद्यपि उपयोगकी दृष्टिसे एकेन्द्रिय है परंतु लब्धि इन्द्रियकी अपेक्षासे एक इन्द्रियसे लेकर पंचेन्द्रिय तकके किसी भी जीवको एक समय पर पांचों इन्द्रियोंकी लब्धि हो सकती है। क्योंकि सर्व संसारी छद्मस्थ जीवोंके मतिज्ञानावरणीय कर्मका क्षयोपशमरूप लब्धि पांचों इन्द्रियोंकी होती है, अतः इस अपेक्षासे सर्व संसारी जीवोंको पंचेन्द्रिय रूपमें पहचाने जा सकते हैं। 537. पांचों इन्द्रियों के विषय भले विद्यमान हों, लेकिन तब उपयोग तो एक ही विषयका होता है, तो फिर किस विषयका, किस इन्द्रियका प्रथम उपयोग हो ? जवाब यह कि, जीवका अभिलाष. अथवा जिस इन्द्रियके क्षयोपशमकी प्रबलता अथवा जिस इन्द्रियके उत्तेजक साधनोंकी जैसी प्रबलता हो, उस इन्द्रियके विषयका ज्ञान प्रथम होता है /
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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