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________________ * पर्याप्तियाँ पूर्ण होने पर क्या शक्तियाँ प्राप्त होती है? * * 223 * विचार न कर सके। इन सब कार्योंके लिए जीव जिन जिन बलोंको उपस्थित करे उसीका दूसरा नाम *पर्याप्ति / इस पर्याप्ति रूप करण-साधन विशेषकी मददसे जीव इन ताकतोंको खड़ी करने में समर्थ बना। ये शक्ति-ताकत पुद्गल द्रव्यके निमित्तसे ही प्रकट होती हैं। पर्याप्ति एक प्रकारके कर्मका ही प्रकार है / कारण के विना कार्य नहीं होता / जीव कारण रूपमें कर्मको ही मानता है। पाठकोंको यह मुद्दा खास ध्यानमें रस्वना चाहिए / पर्याप्तियाँ पूर्ण होने पर क्या क्या शक्तियाँ प्राप्त हों ? ऊपर बताया कि उन उन पर्याप्तिओं द्वारा उस उस प्रकारके बल प्राप्त करता है तो वह किन किन शक्तियोंको प्राप्त करता है और उन शक्तियोंसे क्या क्या कार्य बजाता है. इसे विस्तारपूर्वक देखें। 1. आहार पर्याप्ति पूर्ण होने पर आहार ग्रहण करनेकी शक्तिके साथ ग्रहण किये गए आहारके परिणमनके साथ उसे खल (अर्थात् विन जरुरी मलमूत्रादि भाग और) रस (और जरूरी भाग) रूपमें अलग करनेकी क्रिया में जीव समर्थ बनता है। 2. उसके बाद तुरंत शरीर पर्याप्ति पूर्ण करने पर क्या हो ? उससे शरीरकी विविध क्रियाएँ, देह के योग्य और पोषक ऐसे रोमराजी द्वारा ग्रहण किए जाते लोमाहारको और मुख द्वारा लिए जाते कवल आहार रूप पुद्गलोंको शरीररूपमें परिणत करनेकी अर्थात् बनानेकी क्रियामें जीव समर्थ बन जाता है। 3. इन्द्रिय पर्याप्ति पूर्ण होने पर पांचों इन्द्रियों के विषय बोधमें जीव समर्थ बनता है अर्थात् स्पर्श किस प्रकारका है ! उसका स्वाद कैसा है ? उसकी गंध कैसी है ! विषय दर्शन कौनसा है ? और श्रवण ध्वनि काहेकी है ! इन पांचों विषयोंका ज्ञाता बन सकता हैं। 4. श्वासोच्छवास पर्याप्ति पूर्ण होने पर श्वासोच्छवास लेनेकी ( तत्प्रायोग्य पुद्गलों का ग्रहण-परिणमन और विसर्जन-लेने छोड़नेकी) क्रियामें जीव समर्थ बनता है और यह * रोजबरोजकी अविरत होतीं शारीरिक क्रियाओंके लिए जिन शक्तियोंकी जरूरत पडती है उसका दूसरा नाम पर्याप्ति है। दूसर। अर्थ कारणमें कार्योपचार करके शक्तिको उत्पन्न करनेमें कारणभूत पुद्गलोपचय भी पर्याप्ति है। तत्त्वार्थभाष्य-वृत्तिकी व्याख्या यह है कि शक्तिमें निमित्तभूत पुद्गलोपचय सम्बन्ध क्रियाकी परिसमाप्ति / इस तरह शक्ति-सामर्थ्य, शक्तिके जनक पुद्गल और उस क्रियाकी परिसमाप्ति इस तरहं तीन अर्थ फलित होते हैं।
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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