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________________ * पर्याप्तिका स्वरुप और आठ प्रकारकी वर्गणा * .209. .प्राथमिक रीतसे उपयोगी थोडी अन्य बाबतें भी समझ लें / ऊर्ध्व, अधो और तिर्यक्लोकसे युक्त चौदहराजलोक प्रमाण जितना महाविराट विश्व, चर्मचक्षुसे अदृश्य तथा दृश्य (इन्द्रिय ग्राह्य और अग्राह्य ) ऐसे अणु-परमाणु या उनके स्कंधो-समूहोंसे सर्वत्र व्याप्त हैं / खचाखच भरे हैं। इन अणु-परमाणु आदि को शास्त्रीय परिभाषामें पुद्गल या पुद्गल स्कंधोंसे पहचाने जाते हैं। ये पुद्गल दो प्रकारके हैं / जो पुद्गल स्कंध जीवोंको आहार, शरीर आदिके उपयोगमें आवें वे ग्रहण प्रायोग्य वर्गणाओंके रूपमें पहचाने जाते हैं / और जो अणुपरमाणुओंसे सभर पुद्गलस्कंध जीवोंको आहार-शरीर आदिके उपयोगमें नहीं आ सकते उन्हें अग्रहण प्रायोग्य वर्गणाओंके रूपमें पहचाना जाता है / त्रिकालज्ञ-सर्वज्ञोंने ज्ञानचक्षुद्वारा देखीं ग्रहण प्रायोग्य पुद्गल वर्गणाएँ आठ प्रकारसे बताई हैं / उनके नाम इस तरह है ___ आठ प्रकारकी वर्गणाएँ 1. औदारिकवर्गणा 2. वैक्रियवर्गणा 3. आहारकवर्गणा 4. तैजसवर्गणा 5. श्वासोच्छवासवर्गणा' 6. भाषावर्गणा 7. मनोवर्गणा और 8. कार्मणवर्गणा। ___ आठ प्रकारके कार्योंके लिए आठों वर्गणाओंकी जरूरत पड़ती है। औदारिक, वैक्रिय, आहारक, तैजस और कार्मण इन पांचों वर्गणाके पुद्गल पांच शरीरोंके लिए उपयोगी है। श्वासोच्छ्वास वर्गणा श्वास लेने छोड़ने के कार्यमें और वचन-व्यवहार अथवा भाषा बोलनेके कार्यके लिए भाषावर्गणा और विचार करनेके लिए मनोवर्गणा उपयोगी है / . संक्षिप्तमें विश्वके तमाम जीवोंकी देह तथा इन्द्रियोंकी रचना, श्वासोच्छ्वास क्रिया, भाषा-वचन-व्यवहार और विचार करना आदिमें ये वर्गणाएँ महत्त्वका-मुख्य भाग लेती हैं। - औदारिक ५०'वर्गणाके जो पुद्गल हैं वे, औदारिक शरीर तथा उसके योग्य अंगोपांग तथा इन्द्रियोंकी रचनामें, वैक्रिय वर्गणाके पुद्गल, वैक्रिय शरीर और उसके योग्य इन्द्रियाँ आदिकी रचनामें, आहारक वर्गणाके पुद्गल, आहारक शरीर और उसके योग्य इन्द्रियाँ आदिकी रचनामें उपयोगी बनते हैं। मनुष्य और तिर्यच गतिमें भव प्रायोग्य शरीर औदारिक है और देव तथा नरक गतिमें भव प्रायोग्य शरीर वैक्रिय है। जबकि औहारक शरीर तो मात्र भाव चारित्रवान् 501. वर्गणा अर्थात् दृश्य अदृश्य विश्वमें विविध प्रकारके वर्तित परमाणुओंके बने स्कंधोंके समुदाय / 502. इस शरीरका विशेष वर्णन 344 वीं गाथाके विवरणमें देखना / बृ. सं. 27
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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