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________________ * बंधे हुए आयुष्य किन सात कारणोंसे खंडित होते हैं वह * * 205 . पाणका विनाश कर डाले तथा विषकन्याका स्पर्श ऐसे कारणोंसे प्राणका विनाश हो वह / 7. आणप्राण उपक्रम-आणप्राण अथवा प्राणापान प्राण अर्थात् उच्छ्वास और अपान अर्थात् निःश्वास / तात्पर्य यह कि श्वास लेना और छोडना वह श्वासोच्छ्वास / शरीरमें चेतना-जीव है या मर गया है ! इसे जाननेका यह अतिमहत्त्वका साधन है, वह शरीरमें रहा हुआ एक प्राण ही है / इस श्वासोच्छ्वास से मृत्यु कब हो? तो जब जहरीली हवा श्वासोच्छ्वास द्वारा अंदर जाए तब उसकी धीरे धीरे मृत्यु होती है। रातको कमरेमें लालटेन जलती हो और फिर कमरा बंद करके सो जानेसे लालटेन के मिट्टीके तेलके जलनेसे निकलता मृत्यु हो जाए ऐसा जहरीली कार्वन गैस भरनिंदमें श्वासोच्छ्वास द्वारा अंदर जाती रहे तो सुबह होते ही जितने सोये हों वे सब (प्रायः) मृत्यु पाते हैं। वैसे ही एक जेहलके अंदर पांच कैदी रह सके ऐसी कोठरीमें 50 जनोंको बंद करके दरवाजे बंद किये जाएँ, और बाहरका प्राणवायु मिलता बंद हो जाए तो सब मृत्युकी शरण होते हैं। ( कलकत्ताकी काली कोठरीका उदाहरण प्रसिद्ध है) इसके उपरांत दम, श्वासके भयंकर रोगों के कारण * श्वास सँध जानेसे भयंकर अकुलाहट - घबराहट होनेसे शीघ्र आयुष्य समाप्त हो जाता है। __ऊपरके मुख्य-महत्त्वके सात प्रकारके उपक्रम-धक्के लगनेसे धीरे धीरे भोगे जा सकें ऐसे आयुष्यके पुद्गलोंके उपक्रमके समय जीव तीव्रातितीव्र गतिसे भोग डालता है। जीवन जीनेमें उपादान कारणभूत आयुष्यकर्मके दलिये पूरे हो जाने पर जीव उस शरीरमें एक समय-क्षण भी नहीं रहता, देहमेंसे निकलकर परलोकमें सिधाव जाता है। . ये उपक्रम अपवर्तनके योग्य ऐसे आयुष्यमें फेरफार कर सकते हैं लेकिन अनपवर्तनीय आयुष्यमें तो कुछ फेरफार नहीं कर सकते / . यों तो विवक्षित (मनुष्य-तिर्यचके) किसी भी भवमें जन्मे तब से ही जीव आयुष्य कर्मके दलिये-पुद्गलोंको प्रति समय खपाता ही रहता हैं, उसमें जात जातके उपक्रम ___ 497, प्राचीनकालमें शत्रुराजाको मालूम न हो इस तरह मार डालनेको, ऐसी विषकन्याएँ तैयार की जाती थीं। इस स्त्रीका समग्र शरीर कातिल जहरीला बन जाए इसलिए उसे छोटी उम्रसे ही शरीरमें खुराकके साथ या औषधद्रव्यके साथ थोडा थोडा जहरीला द्रव्य दाखिल किया जाता है / लम्बे अरसेके बाद उसकी सातों धातुएँ जहरीली बन जाती हैं / ऐसी कन्या-स्त्री विषकन्याके नामसे पहचानी जाती है / फिर जरुरत पड़ने पर उस कन्याका शत्रुके साथ कपटसे संबंध जुडवाते हैं और विषकन्याकी देहका स्पर्श होनेसे राजाकी मृत्यु होती है और इस तरह किसने मार डाला यह पकडा नहीं जाता /
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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