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________________ * उपक्रम, अनुपक्रमका प्रकार और उसकी व्याख्या. गाथार्थ-अपनी आत्मासे समुत्पन्न हुए आन्तरिक जो अध्यवसायादि हेतु विशेषसे अथवा इतर अर्थात् दूसरे विष-अग्नि-शस्त्रादिकके बाह्य जिन निमित्तोंसे आयुष्य उपक्रम पाए-अर्थात् दीर्घकाल पर वेदने योग्य आयुष्य स्वरूप कालमें वेद कर पूर्ण किया जा सके वैसा व्यवस्थित कर दे वह अपवर्तन हेतुभूत उपक्रम कहलाता और दूसरा उससे - विपरीत अनुपक्रम ( अथवा निरुपक्रम ) जानें / // 336 // विशेषार्थ-उपक्रम-अनुपक्रमकी ब्याख्या अगाऊ से ही विशेषार्थमें बता दी है / लेकिन यहाँ तो ग्रन्थकार स्वयं ही उपक्रम किसे कहा जाए, इसे गाथाके पूर्वार्धमें दोनों प्रकारके हेतु प्रस्तुत करके समझाते हैं / उस हेतुका उत्तरार्धमें उल्लेख भी किया है और साथ साथ उपक्रमसे विपरीत अर्थात् जिसमें उपक्रमका अभाव है वह अनुपक्रम या निरुपक्रम है यह भी बताया है, जिसे अर्थापत्तिसे स्वाभाविक रीतसे समजा जा सके वैसा है। यहाँ एक दूसरी बात भी समझ लेनी चाहिए कि अपवर्तनीय आयुष्य तो मानो सोपक्रमी ही होता है, परंतु अनपवर्तनीय आयुष्य तो निरुपक्रमी ही होता है. ऐसा हम / दृढतापूर्वक समझ चुके हैं, लेकिन उसमें भी अपवाद है। सर्वथा ऐसा नहीं है / इसका इशारा गाथा 334 की टिप्पणीमें किया है, तथा वहाँ बताया है कि क्वचित् उपक्रम भी लगता है / इसके उपरांत दूसरा समझना यह है कि इस आयुष्यमें क्वचित् उपक्रम खड़ा होता है। प्रत्यक्ष दीखता भी है, लेकिन वह निश्चित बनी आयुष्यकी डोरी को संक्षिप्त करनेका कार्य लेश मात्र नहीं करता, लेकिन वह तो मात्र वहाँ निमित्त-कारणरूप ही प्रस्तुत हुआ होता है / नहीं कि उपादानरूपमें या आयुष्यका क्षय करने के लिए / अलवत्त स्थूल ज्ञान या दृष्टिवालेको ऐसा भास होता है, लेकिन वास्तवमें सूक्ष्म दृष्टिवालेको वैसा भास नहीं होता। क्योंकि जितना आयुष्य था वह प्राकृतिक रूपमें / क्रमशः ही क्षीण होता जाता है / इसमें बराबर अन्तकाल पर ही कोई उपक्रम हाजिर हो जाए और अंतिम दो चार घण्टेका जो आयुष्य हो वह उपक्रमकी वेदनाके साथ पूर्ण भोग डाले (लेकिन जरा भी हास न ही हो) और दृश्य उपक्रमसे मृत्यु सरजी ऐसा देखनेवाला कहे, लेकिन वास्तवमें ऐसा नहीं होता, सिर्फ वह तो सहयोगरूपमें ही रहता है। अतः आयुष्यके नीचे अनुसार भी प्रकार हो सकते।
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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