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________________ * वकागतिमें जीव कितने समय माहारी या अनाहारी होते है? . . 191 . है, अतः व्यवहारनयमें उसके दोनों समय आहारक ही होते हैं। एक मी समय अनाहारक नहीं होता, क्योंकि जब शरीर छोडता है उसी समयमें औदारिकादि पुद्गलोंका लोमाहार करके शरीर छोडकर प्रथम समयमें एक वक्रामें दाखिल हुआ और उसी वक्राके दूसरे समय पर तो उत्पत्ति प्रदेशमें पहुँच मी गया। जिस समय पर पहुँचा उसी समय पर कार्मण काययोग द्वारा तद्भवयोग्य ओजाहार स्वरुप परमाणुओंका आहार ग्रहण करता है। इसलिए एक वक्रामें दोनों समयोंको व्यवहारनयसे आहारी समझना / तीन समयकी द्विवकागतिमें एक वक्रागतिवत् व्यवहारनयसे प्रथम समय आहारी, दूसरा समय अनाहारी और तीसरा समय [ परभव विषयक ] आहारी। कुल 2 ( दो ) समय आहारक और एक समय अनाहारकपनेके समझना / त्रिवकागतिके चार समयमेंसे व्यवहारनयसे पूर्ववत् पहला [प्रस्तुत भवाश्रयी] और अंतिम [परभवाश्रयी ] चौथा समय आहारी और दूसरा-तीसरा ये दो मध्यके समय अनाहारी / अर्थात् यहाँ दो समय आहारक तथा दो समय अनाहारक / चतुर्वक्रागतिके पांच समयमेंसे व्यवहारनयसे आदि और अंतिम इन दो समयको आहारी और विचके तीन समयको अनाहारक जानें। - इस व्यवहारनयाश्रयी कथनमें विचके समय अनाहारक और पहले, अंतिम समय आहारक हैं। अव निश्चयनयकी अपेक्षासे जणाते है। ऊपरका सारा कथन व्यवहारनयसे गाथानुसार कहा, लेकिन निश्चयनयसे सोचे तो [ एकवकागतिमें व्यवहारनयसे दोनों समय आहारी जनाने पर भी] एक समय निराहारी मिलेगा, क्योंकि जीव पूर्व देहमेंसे छूटा तव उस परभवके प्रथम समयमें पूर्व शरीरके साथ जीवका सम्बन्ध रहा न होनेसे और ग्रहण करनेके परभवके शरीरकी अभी प्राप्ति हुई न होनेसे उस समय आहार नहीं लेता और दूसरे समय अपना उत्पत्तिस्थान पाकर आहार करता है इसलिए एक वक्रागतिमें भी एक समय अनाहारी है। 483. इस पंच समयवाली वक्रागति जीवको क्वचित् संभवित है, क्योंकि मूलसूत्रमें चार समयवाली गति तकका उल्लेख है, परंतु भगवती, स्थानांग वृत्तिकार वक्रगतिमें अनाहारककी चिंता-प्रसंगमें "एको द्वौ वाऽनाहारकः' कहकर एक समय, दो समय अनाहारकपन बताते हैं और 'वा' शब्द ग्रहणसे तीन समय भी अनाहारक गिनते हैं / यहाँ परभव जाते जीवको बेलकी नथके अनुसार इष्टस्थल पर पहुँचानेमें उदयमें आता आनुपूर्वीका उदय उत्कृष्ट चार समयका कहा है और उस चार समयका उदय सहचारी यांच समयकी वक्रागतिसे जाए तो ही संभवित है, अतः विरोध न समझना /
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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