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________________ * 18 . .श्री रहदसंग्रहणीरत्न-हिन्दी भाषांतर . से अमिमें जाने पर दूसरा मोड और तीसरा समय हुआ। इस तरह तीन समयकी द्विवक्रा गति समझना। . सनाडीवर्ती जो त्रस जीव मरकर पुनः त्रस होनेवाले हैं उन जीवोंको वक्रामें एक वक्रा और द्विवका ये दो गतियाँ ही होती हैं। बादकी दो वक्रा होती ही नहीं, क्योंकि त्रसनाडीमें मरे और पुनः त्रसनाडीमें जन्म लेनेवाले त्रस जीवोंमें अधिक वक्रामोड करनेके होते ही नहीं अतः उन्हें ऋजुगति तो है ही। जो स्थावर जीव हैं, जो मरकर पुनः स्थावर होनेवाले हों उनके ऋजुगतिके उपरांत चारों वक्रागति होती हैं। उन्हें तमाम गतियाँ प्राप्त होती हैं। इन स्थावरोंके त्रिवक्रा और चतुर्वक्रा दो अधिक कहीं तो कैसे ? त्रिवक्रा किस तरह ? ___स्थावर जीव तो चौदह राजलोकमें सर्वत्र ठांस ठांस कर व्याप्त भरे हैं। वह त्रसनाडीमें भी है और त्रसनाडीके बाहर भी है। जब त्रस जीव तो मात्र विचकी त्रसनाडीके स्थानमें ही होते हैं। इसलिए स्थावरोंका क्षेत्र सर्वव्यापक है। . किसी स्थावरजीवकी सूक्ष्मदेहधारी आत्मा, बाई वाजूकी त्रसनाडीके बाहर अधोलोककी विदिशामें मर गयी है। और उसे उत्पन्न होना है त्रसनाडीकी दाहिनी बाजू पर ऊर्ध्वलोककी दिशामें, तब वह प्रथम तो बसनाडीके बाहर प्रथम समय पर विदिशामें से दिशामें चलती है, दूसरे समय पर (प्रथम काटकोन करके) दाहिनी बाजूसे त्रसनाडीके अंदर दाखिल होती है, तीसरे समय पर (दूसरा काटकोन करके) सनाडीके अंदर ही ऊँची जाती है और चौथे समय पर सीधी ही-तीसरे समयमें जहाँ थी वहींसे-उसी श्रेणीसे (बाई बाजू पर) त्रसनाडीके बाहर निकलकर उत्पत्तिस्थानमें जाकर खडी रहे / इस तरह अधोलोककी दिशामें से ऊर्ध्वलोककी विदिशामें जाना हो अथवा ऊर्ध्वमेंसे अधोमें आना हो तो यही क्रम समझ लेना / इस तरह दिशामें से विदिशामें या विदिशामें से दिशामें जानेके लिए स्थावरोंकी चार समयकी त्रिवका कही। चतुर्वक्रा किस तरह ? त्रिवक्रामें दिशा-विदिशाकी बात थी। इसमें इतनी अधिक कि यह गति विदिशामें से (दिशा नहीं लेकिन ) विदिशामें ही उत्पन्न होनेवाले के लिए होती है। ऊपर विदिशामेंसे ऊर्ध्वलोकमें त्रसनाडीके बाहर दिशामें जाकर अटका था। यहाँ त्रसनाडीके बाहर विदिशामें जानेका एक स्टेशन बढा, अतः दिशामेंसे फिरसे विदिशाके उत्पत्ति स्टेशन पर
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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