SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 575
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ . . परभवायुष्यका बंधकाल .. करता जाए और विचमैं उस आयुष्य कर्मको कुछ मी उपक्रम न लगे-अर्थात् अनुपम स्थिति रहे-तो तो पूरे सौ वर्ष पर ही मृत्यु पाए। लेकिन जन्मांतरमें / सालका आयुष्य बांधते समय साथमें ऐसे प्रकारके शिथिल मनोभाव जुडे कि जिससे वह आयुष्य बांधा तो था सौ सालका ही लेकिन शिथिलभावका बांधा, तो वैसे जीवको ( आगे गाथा 337 में जणाये अनुसार ) अलग अलग प्रकारके उपद्रव, आघात, प्रत्याधात लगते कि सौ वर्ष तक चले. ऐसे आयुष्य पुद्गलोंको बडे बडे समूहमें शीघ्र भोगकर क्षय कर डाले, तो थोडे. वर्षों में ही जीवनदीपक बूझ जाए / अरे ! भयंकर कोटिका रोग, अकस्मात, शस्त्रादिकका घात या भय आदि हो. तो अंतर्मुहूर्तमें मी जीवनज्योत खत्म हो जाए, जिसे व्यवहारमें अकाल मृत्यु कहते हैं / इस तरह आयुष्य विषयक भूमिका बताई / [ 326 ] अवतरण-अब इन सातों आयुष्यद्वारोंका क्रमशः विस्तारसे वर्णन करते हैं जिसमें प्रथम बंधकाल जो जीवोंके जितना होता है उसे घटाते हैं। बंधंति देव-नारयअसंखनरतिरि छमाससेसाऊ / ... परभवियाउ सेसा, निरुवक्कमति भागसेसाऊ // 327 // सोवकमाउआ पुण, सेसतिभाये अहव नवमभागे / सत्तावीसहमे वा, अंतर्मुहुत्तं तिमे वा विं // 328 // .... गाथार्थ-( निरुपक्रमायुषी ), देव-नारक, असंख्यवर्षायुषी युगलिक मनुष्य तथा तिर्यच ( अपने चलते भवका) छः माँस. आयुष्य बाकी रहे तब परभवका आयुष्य बांधते हैं / तथा शेष जीवोंमें निरूपनमायुषी निश्चयसे, अपने आयुष्यका शेष तीसरा भाग बाकी हो तब, और जो सोपक्रमायुषी हैं वे अपने आयुष्यके शेष तीसरे भागमें परभवायुष्य बांधते हैं। लेकिन निश्चयसे नहीं। इसीलिए स्वआयुष्यके बाकीके नौवें भागमें. सत्ताईसर्व भागमें, ( इस तरह तीसरे तीसरे भागमें) आखिर स्वआयुष्यके अन्तिम अन्तर्मुहूर्तमें मी परभव विषयक आयुष्य जरूर बांधते हैं / // 327-328 // :- विशेषार्थ-गत गाथामें आयुष्यके साथ संबंध रखनेवाली सात वावतें बताई और . 'साथ साथ ग्रन्थान्तरसे आयुष्य विषयक मीमांसा की / अब सात वाक्तोंमें से पहली बाबत 476. यह वचन 'प्रायिक समझना, क्योंकि ठाणांग सूत्र में अध्याय छठेकी "टीकामें छः मास शेष रहने परं आयुष्य न बांधे तो घटाते हुए यावत् अन्तर्महूर्तमें भी बांधे ऐसा कहा है।
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy