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________________ .152. * श्री बृहत्संग्रहणीरत्न-हिन्दी भाषांतर * परंतु विशेष यह है कि, मनुष्योंकी [गर्भज मनु० ] अंतिम लेश्याकी अर्थात् शुक्ललेश्याकी उत्कृष्ट स्थिति नौ वर्ष न्यून [देशोन नौ वर्ष न्यून ] पूर्व करोड वर्षकी होती है। // 311 // विशेषार्थ-यहाँ मूल गाथामें 'नववासूणा' नौ वर्ष न्यून ऐसा पद है परंतु इस गाथाके टीकाकारने उस शब्दकी व्याख्या करते 'नववासूणा' शब्दसे ऐसा विशेष स्पष्टार्थ बताया है कि नौ वर्ष न्यून नहीं लेकिन कुछ न्यून ऐसे नौ वर्ष न्यून पूर्व करोड वर्षकी स्थिति शुक्ल लेश्याकी भी है, और उतने प्रमाणवाली उत्कृष्ट स्थिति [पूर्व करोड वर्ष उपरान्तके आयुष्यवालोंको संयम प्राप्तिका अभाव होनेसे ] पूर्व करोड वर्षके आयुष्यवाले मनुष्योंने कुछ अधिक आठ वर्षकी उम्र होनेके बाद ["साधिक आठ वर्षकी वयमें ] केवलज्ञान उत्पन्न किया हो वैसे केवलीकी शुक्ललेश्या आश्रयी [वह उत्कृष्ट स्थिति] 'जोनें / इसके सिवाय शेष मनुष्योंकी शुक्ललेश्या तो उत्कृष्टसे भी अन्तर्मुहूर्त प्रमाणवाली ही है / [311] अवतरण-गतिआगतिद्वारको पूर्ण किया, अतः ही तिर्यचद्वारकी समाप्तिको बताते हुए ग्रन्थकार प्रथम चारों गतिकी नहीं कही गई अलग अलग व्याख्याका संबंध जोडते हैं। तिरिआण वि ठिइपमुह, भणिअमसेसं वि संपयं वोच्छं / अभिहिअदारभहिअं, चउगइजीवाणं सामन्नं // 312 // गाथार्थ-तिर्यंचोंके भी स्थिति प्रमुख आठों द्वार कहे / अब शेष रही वक्तव्यताके बारेमें कहेंगे / उसमें कहे गए द्वारोंसे प्रासंगिक उपयोगी जो अधिक वर्णन, उसे चार गतिके जीव आश्रयी सामान्यसे कहेंगे / // 312 // 453. लोकप्रकाशकारने द्रव्यलोकमें 'नववासणा का अर्थ श्रीउत्तराध्ययन, पन्नवणाकी वृत्तिका आधार लेकर नौ वर्ष न्यून पूर्व करोड ऐसा किया और उसी संग्रहणीकी गाथाकी टीकाका अर्थ अलग करके दो कथन ये उपस्थित किये कि 'न्यून ऐसे नौ वर्षमें न्यून पूर्व करोड वर्ष और कुछ अधिक आठ वर्षमें न्यून पूर्व करोड वर्ष इस प्रकार दो तथा प्रथम बताया वह नौ वर्ष न्यून पूर्व करोड वर्ष इस तरह तीन कथन जणाकर बहुश्रुतके पास समन्वय करने जणाया है / _ 454. किंचिद् न्यून नौ वर्ष अथवा साधिक आठ वर्ष ये दो वाक्यो लगभग समान अर्थदर्शक समझने चाहिए। ____लोकप्रकाशकारने तीन कथन भिन्न भिन्न दिखाये, उसके अनुसार गर्भाष्टम, जन्माष्टम तथा जन्माष्टमकी दीक्षा सिद्ध होगी / इससे गर्भाष्टमसे अनुत्तरका जघन्य अंतर तथा मोक्षगमनका जघन्यायुष्य भी अच्छी तरह मिल जाएगा। 455. श्री द्रव्यलोकप्रकाशमें कहे अनुसार उत्तराध्ययन सूत्रवृत्ति और प्रज्ञापनावृत्तिमें नौ वर्ष न्यन पूर्व करोडकी उत्कृष्ट स्थिति कही है, 'वह आठ वर्षकी उम्र में दीक्षा लेनेके बाद एक वर्षके चारित्रपर्यायके बिना केवलज्ञान उत्पन्न न हो' इस हेतुको दिखाकर कही है और जहाँ उस हेतुकी अपेक्षा नहीं है वहाँ साधिक आठ वर्षमें चारित्र पाकर शीघ्र क्षपक होकर केवलज्ञान पा सकता है इस अपेक्षासे देशोंके नौ वर्ष अथवा साधिक आठ वर्ष न्यून पूर्व करोड वर्ष प्रमाणकी वह स्थिति हो सकती है /
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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