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________________ * 132 . * श्री बृहत्संग्रहणीरत्न-हिन्दी भाषांतर * अनन्ता है। लेकिन विशेष यह कि-अनादिअनंत स्थितिकी अपेक्षासे न्यून है, अतः मर्यादित है और इसीलिए ये जीव वर्तमानमें असांव्यवहारिक गिना जाए, तथापि भावि सांव्यवहारिक रूपमें संबोधित किया जा सकता है। __सूक्ष्म-बादर सांव्यवहारिककी कायस्थिति-सादिसान्त-तीसरे प्रकारमें सादिसान्तकी कायस्थिति कहते हैं-उसमें प्रथम जो जीव सूक्ष्मनिगोदमेंसे निकलकर एक बार भी बादरपृथ्वी आदिमें उत्पन्न हुए हैं वे सांव्यवहारिक कहे जाते हैं। इस सांव्यवहार राशिमें आनेके बाद, पुनः कर्मयोगसे वे जीव सूक्ष्मनिगोदमें उत्पन्न हों तो भी वे सांव्यवहारिक ही कहलाते हैं, परंतु इस तरह सांव्यवहार राशिवाले सूक्ष्म निगोदकी कायस्थितिमें तथा अनादि सूक्ष्म निगोदकी कायस्थितिमें बहुत ही तफावत है। प्रथम कह गए उस अनुसार / अनादि ( असांव्यवहारिक) सूक्ष्म निगोदकी कायस्थिति अनादिअनंत तथा अनादिसांत है। जबकि इस सांव्यवहारिक सूक्ष्म निगोदकी कास्थिति सादिसांत है। अतः अनादि सूक्ष्म निगोदमेंसे बादरपृथ्वी आदिमें आनेके बाद पुनः सूक्ष्म निगोदमें जाए तब सूक्ष्म निगोदत्वका आदि हुआ, तथा अधिकाधिक असंख्य उत्सर्पिणो अवसर्पिणी रहकर फिर अवश्य पुनः बादर पृथ्वीकाय आदिमें आने पर सूक्ष्म निगोदत्वका अंत हो, इस अपेक्षासे सांव्यवहारिक सूक्ष्म निगोदकी कायस्थिति सादिसान्त समझना। . जितने जीव सांव्यवहारिक राशिमेंसे मोक्षमें जाएँ उतने ही जीव असांव्यवहारिकमें से निकलकर सांव्यवहारिक राशिमें उत्पन्न हो वे सांव्यवहारिक कहलाते। ये सांत्यवहारिक जीव पहले कहे अनुसार सूक्ष्म-वादर दो भेदमें हैं अतः जब सूक्ष्मनिगोदमें [ वह चौदहराज लोकवर्ती असख्य गोलेमें ] वर्तित हो तब सांव्यवहारिक सूक्ष्म निगोदीया, तथा जब बादर निगोद [वह काई फूल आदि तत्प्रायोग्य वनस्पति ] में हो तब सांव्यवहारिक बादर निगोदीया कहलाता है / इस सादिसान्त सांव्यवहारिक सूक्ष्मनिगोदकी कायस्थितिका प्रमाण कितना है ? यह कहते हैं। सूक्ष्म सांव्यवहारिक निगोदकी स्थिति - ___ सांत्यवहारिक सादिसान्त सूक्ष्म निगोदकी कायस्थिति कालसे असंख्य उत्सर्पिणी अवसर्पिणी, क्षेत्रसे असंख्य लोकाकाशका आकाशप्रदेश प्रमाण, [ अर्थात् उसमेंसे प्रत्येक क्षणमें एक एक प्रदेश हरनेमें जो समय लगे वह / ] उसका समय असंख्य कालचक्र जितना होता है और असंख्य कालचक्र के समय अंगुलीप्रमाण आकाशश्रेणीमें रहे हुए आंकाशप्रदेश
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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